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जैन दर्शन में आत्म-विज्ञान | ३०१
(३) चेतन-जो चेतना या उपयोग शक्ति से युक्त है। (४) सत्त्व-जो सद्भूत, सत्य व शाश्वत है।
प्रात्मा के लक्षण प्रात्मा अनंत धर्म युक्त है। उसके मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं
"नाणं च सणं चेव, चरित्त च तवो तहा।
वीरियं उवओगो य, एवं जीवस्स लक्खणं ।" अर्थात् ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप, वीर्य व उपयोग ये जीव के लक्षण हैं। इनके अतिरिक्त अगुरुलषत्व और अमूर्तत्व आदि भी जीव के लक्षणों में आते हैं।
आत्मा के विभिन्न स्वरूप
शुद्धात्मा ज्ञान, दर्शन, सुख और शक्ति रूप चतुष्टय से युक्त है। किन्तु मोहग्रस्त प्रात्मा अपने अनंत ऐश्वर्य से वंचित है। विभिन्न रूपों में रहने से उसका वर्गीकरण ज्ञानियों ने इस प्रकार किया है
(१) द्रव्यात्मा-प्रत्येक प्रात्मा असंख्य प्रदेशमय है । (२) कषायात्मा-क्रोध, मान माया व लोभ में प्रवृत्त प्रात्मा । (३) योगात्मा-जो योग-मन, वचन व काय सहित हो। (४) उपयोगात्मा-जो ज्ञान-दर्शन में उपयोग-युक्त हो। (५) ज्ञानात्मा-जो ज्ञान में प्रवृत्त हो। (६) दर्शनात्मा-जो दर्शन में प्रवृत्त हो। (७) चारित्रात्मा-जो चारित्र में प्रवृत्त हो । (८) वीर्यात्मा-जो पुरुषार्थ से युक्त हो।
इनमें पहली, चौथी, पांचवी व छठी ये चार प्रात्माएँ द्रव्य और गुण अपेक्षा से होने से सभी जीवों में होती है। किन्तु अन्य शेष चार प्रात्माएँ जीव के अशुद्ध स्वरूप में ही मिलती हैं।
आत्मा के भेदः
प्रात्माएं अनंत हैं और सभी का अलग-अलग अस्तित्व है। उनकी विभिन्न दशा और विभिन्न पर्यायों की अपेक्षा से उनके भेद स्पष्ट किए जाते हैं
१. एक भेवः -सभी पात्माएँ चेतना, उपयोग युक्त हैं। प्रतः संग्रहनय की अपेक्षा सब एक हैं । मागम में कहा भी है'-'एगे पाया' । किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि आत्माओं का मस्तित्व अलग-अलग स्वतन्त्र नहीं है । द्रव्य की अपेक्षा सभी आत्माएं अलग-अलग हैं। अगर -ऐसा न हो तो फिर एक समय में ही एक प्रात्मा द्वारा सुख की तो दूसरी प्रात्मा द्वारा दुःख की अनुभूति या एक द्वारा हँसना तो दूसरी द्वारा रोना आदि विभिन्न क्रियाएँ कैसे होती?
१. स्थानांगसूत्र, स्थान १
पिनो टीवो
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