________________ खण्ड 4 : धर्म, दर्शन एवं अध्यात्म-चिन्तन प्रतिबन्धक कर्म चार हैं, इन में से प्रथम मोहनीय कर्म क्षीण होता है, तदन्तर अन्तर्मुहूर्त बाद ही ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय-इन तीन कर्मों का क्षय होता है। इस प्रकार मोक्ष प्राप्त होने से पहले केवल उपयोग-सामान्य और विशेष दोनों प्रकार का सम्पूर्ण बोध प्राप्त होता है / यही स्थिति सर्वज्ञत्व और सर्वदशित्व की है। विवेकजन्य तारक ज्ञान महर्षि पतंजलि लिखते हैं-"जो संसार समुद्र से तारने वाला है, सब विषयों को, सब प्रकार से जानने वाला है, और बिना क्रम के जानने वाला है, वह विवेक जनित ज्ञान है।" "बुद्धि और पुरुष-इन दोनों की जब समभाव से शुद्धि हो जाती है, तब कैवल्य होता है।" इस प्रकार बन्धहेतुओं के अभाव और निर्जरा से कर्मों का आत्यन्तिक क्षय होता है। सम्पूर्ण कर्मों का क्षय होना ही मोक्ष है। पता-गली आर्य समाज जैन धर्मशाला के पास हांसी (हिसार) 125033 नाव रहेगी तो पानी में ही रहेगी / आप और हमको, जब तक मोक्ष नहीं होगा""मोक्ष की साधना संसार में रहकर ही करनी होगी / संसार इतना बुरा नहीं है। तीर्थंकर, सन्त, साधुपुरुष, सब इस संसार में ही तो जन्मे हैं / उन्होंने संसार में रहकर ही तो साधना की है। यहीं रहकर तीर्थंकर बने, सन्त बने, महापुरुष बने, ब्रह्मचारी बने, सदाचारी बने / सच तो यह है कि बाह्य संसार इतना बुरा नहीं है। अन्दर का संसार बुरा है / संसार बुरा नहीं है, संसार का भाव बुरा है / हम संसार में भले रहें, किन्तु संसार हमारे अन्दर नहीं रहना चाहिए / संसार का अन्दर रहना ही बुरा है। पाप का कारण है, कर्म-बन्धन का हेतु है। नाव पानी में रहती है, बैठने वाले को तिराती है, स्वयं भी तिरती है। जब तक नाव पानी के ऊपर बहती रहती है, तब तक बैठने वाले को कोई खतरा नहीं / नाव पानी में भले रहे, किन्तु पानी नाव में नहीं रहना चाहिए, नहीं भरना चाहिए। जब पानी नाव में भरना शुरू हो जाता है तब खतरा पैदा हो जाता है। नाव के डूबने का डर रहता है। मरने की स्थिति आ जाती है, क्योंकि नाव पानी से भारी हो गई है। -आचार्य श्री जिनकान्तिसागर सूरि ('उठ जाग मुसाफिर भोर भई' पुस्तक से) 卐 खण्ड 4/8 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org