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________________ ३७८ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ ०००००००००००० 000000000000 AHIRAIL RA .... VITIES HITHA पOS चाहिए । हाथ में सूत की आंटी डालकर तथा सूपड़े में उड़द का बाकुला रखकर भी दान दिया जा सकता है । संघ स्नेह का कार्य अवश्यमेव किया जाना चाहिए। (१७) पचरंगी तप-पहले दिन पांच पुरुष या स्त्रियाँ उपवास या आयम्बिल या दया व्रत करे, दूसरे दिन वे पाँच तथा अन्य, तीसरे दिन पांच और इस तरह पांचवें दिन २५ ही व्यक्ति व्रताराधना करें तो एक पचरंगी तप पूर्ण होता है। (१८) धर्म चक्र-४२ व्यक्ति एक साथ बेला करें तथा एक अन्य व्यक्ति तेला करे तो एक धर्म चक्र होता है। (१६) आयम्बिल ओली व्रत-अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग् चारित्र और तप इन नौ पदों से सम्बन्धित व्रत नवपद या सिद्ध चक्र या आयम्बिल ओली व्रत कहलाते हैं। चैत्र शुक्ला १ से हतक तथा आसोज शुक्ला एकम से नवमी तक नौ-नौ आयम्बिल किए जाते हैं । नवपद जी की ओली साढ़े चार वर्ष तक करने की मान्यता है । यथासम्भव नौ ही दिन आयम्बिल भिन्न-भिन्न पदार्थों से किए जाते हैं। (२०) मौन एकादशी--मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी के दिन अनेक तीर्थंकरों के कल्याणक हुए हैं यथा (१) अठारहवें तीर्थकर ने इसी दिन दीक्षा ली। (२) उन्नीसवें तीर्थंकर के जन्म, दीक्षा और केवल इसी दिन हुए। (३) इक्कीसवें तीर्थकर को केवलज्ञान इसी दिन हुआ। इसी दिन पाँच भरत में, पाँच एरावत क्षेत्रों में, पांच-पांच सब मिलाकर पचास कल्याणक तथा अतीत और अनागत के भेद से डेढ़ सौ कल्याणकों से सम्बन्धित यह पर्व आराधना के लिए अति उत्तम माना जाता है। मौन सहित उपवास मार्गशीर्ष महीने की सुदी ग्यारस को करना चाहिए । ग्यारह वर्षों तक प्रति वर्ष मौन एकादशी का उपवास अथवा ग्यारह महीनों तक सुदी ग्यारस को किया जाना लाभकारी रहता है। तीर्थंकरों के कल्याणक की माला अवश्य फेरनी चाहिए। (२१) मेरू त्रयोदशी-वर्तमान अवसर्पिणी काल के सुषमसुषमा नामक तीसरे आरे के तीन महीने पन्द्रह दिन बाकी रहे तब माघ बदी १३ के दिन प्रथम तीर्थकर श्री ऋषमदेव जी मोक्ष में पधारे। अढाई द्वीप में पांच मेरू हैं प्रभु के साथ दस हजार मुनियों ने शैलेशीकरण करके मेरू जैसी अचल स्थिति को प्राप्त कर ली थी। साधक पूर्वकाल में रत्नों के मेरू रचकर व्रताधराना करते थे अब साकर के पाँच मेरू रचने का व्यवहार प्रचलित है। (२२) चैत्री पूर्णिमा व्रत-मान्यता है कि पांच करोड़ मुनिवरों के साथ इस दिवस को श्री सिद्ध गिरि जी पर पुण्डरीक स्वामी मोक्ष पधारे । श्री पुण्डरीक स्वामी भगवान ऋषभदेव के प्रथम गणधर थे । चैत्र मास की ओली का भी यह दिन है। पूर्णिमा पर्व तिथि भी है । त्रिवेणी रूप यह व्रत लाभदायक है। (२३) पञ्च कल्याणक तप-यह व्रत एक वर्ष में भी पूरा होता है। इसमें १२० उपवास और १२० पारणा होते हैं, जिस-जिस तिथि में तीर्थंकर का कल्याणक हुआ हो उस तिथि का उपवास करना चाहिए। पाँच वर्ष में भी यह तप पूरा किया जाता है प्रथम वर्ष में तीर्थंकरों के गर्भ की तिथियों के २४ उपवास करे इसी प्रकार द्वितीय वर्ष में जन्म के २४, तीसरे वर्ष में संयम (तप) के २४, चौथे वर्ष केवल ज्ञान के २४ और पांचवें वर्ष निर्वाण के २४ उपवास किये जाते हैं । निर्वाण कल्याणक के बेले करने पर २४ बेले और २४ पारणे होते हैं, इसे निर्वाण कल्याणक बेला व्रत कहते हैं। (२४) कर्मनिर्जरा व्रत-यह व्रत आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी से प्रारम्भ होता है अर्थात् दर्शन विशुद्धि के निमित्त आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी का उपवास करना चाहिये । दर्शन विशुद्धि की भावना माननी चाहिए । 'ओं ह्रीं दर्शन विशुद्धये नमः' इस मन्त्र का जाप करना चाहिए। सम्यग्ज्ञान भावना के निमित्त श्रावण शुक्ला चतुर्दशी को उपवास करके सम्यग्ज्ञान भावना का चितवन करना चाहिए। 'ओं ह्रीं सम्यग्ज्ञानाय नमः' इस मंत्र की माला फेरनी चाहिए । सम्यक्चारित्र के लिए भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी को उपवास करके सम्यकचारित्र भावना का चितवन करे । 'ओं ह्रीं सम्यक्चारित्राय नमः' इस मंत्र की माला फेरनी चाहिए। सम्यक् तप के निमित्त आसोज शुक्ला चतुर्दशी को उपवास करके तप की भावना का चितवन करना तथा 'ओं ह्रीं सम्यक् तपसे नमः' मंत्र की माला फेरनी चाहिए। - Lamducationalmementioned Pincidenone-Only Amr.jainelibrary.org
SR No.210922
Book TitleJain Sadhna me Tap ke Vividh Rup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGotulal Mandot
PublisherZ_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf
Publication Year1976
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ritual
File Size2 MB
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