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________________ जैन साधना में तप के विविध रूप | ३७७ (८) भद्रोत्तर तप--एक परिपाटी में एक सौ पिचहत्तर तपस्या के तथा पच्चीस दिन पारणे के होते हैं इस का क्रम इस प्रकार है 000000000000 ०००००००००००० (६) मुक्तावली तप-इसमें उपवास करके पारणा, फिर बेला करके पारणा, फिर उपवास करके पारणा, तेला करके पारणा, फिर उपवास । इस तरह एक-एक उपवास के अन्तर से सोलह तक पहुंचते हैं, फिर उसी क्रम से उतरकर उपवास तक आया जाता है । इसकी एक परिपाटी में उनसाठ दिन पारणे के तथा दो सौ छियासी दिन तपस्या के होते हैं। (१०) आयम्बिल बर्द्धमान तप-इसमें एक आयम्बिल दूसरे दिन उपवास, फिर दो आयम्बिलउपवास→ तीन आयम्बिल-उपवास→चार आयम्बिल-उपवास-यों बीच-बीच में उपवास करते हुए सौ तक आयम्बिल किए जाते हैं तपस्या की इस एक लड़ी में चौदह वर्ष, तीन मास और बीस दिन लगते हैं । (११) वृहद ज्ञान पञ्चमी तप–प्रत्येक माह की शुक्ला पंचमी को लगातार साढ़े पांच वर्ष तक व्रताराधना सम्यक् ज्ञान प्राप्ति के लिए की जाती है । कार्तिक शुक्ला पंचमी को तो अवश्य ही व्रत किया जाना चाहिए। तप पूर्ति पर ज्ञानोपकरण प्रदान किए जाने चाहिए। 'ओ३म् ह्रीं श्रीं नमो नाणस्स' पद का सवा लक्ष जाप किया जाना श्रेयस्कर है। (१२) रोहिणी तप-रोहिणी नक्षत्र के दिन उपवास, नीविगय या आयम्बिल से सात वर्ष सात मास तक यह व्रत किया जाता है। (१३) वर्षो तप व्रत विधि-३६० उपवास फुटकर या उपवासों को एकान्तर कर दो वर्ष में इस तप को पूरा किया जाता है अक्षय तृतीया को इसका पारणा किया जाता है । (१४) दश प्रत्याख्यान तप-नमोकारसी १, पोरसी २, साठ पोरसी ३, पुरिमड्ढ ४, एकासना ५, नीवी ६, एगलठाणा ७, दात्त ८, आयम्बिल ६, उपवास फिर १० अभिग्रह इस प्रकार दश विधि प्रत्याख्यान की आराधना की जाती है। (१५) ढाई सौ प्रत्याख्यान तप-२५ नमोकारसी, २५ पोरसी, २५ डेढ़ पोरसी, २५ एकासना, २५ 'एकलठाणा, २५ नीविगय, २५ आयम्बिल, २५ अभिग्रह और २५ पौषधोपवास तप करने पर ढाई सौ प्रत्याख्यान तप पूरा होता है। (१६) चन्दनबाला तप व्रत-साधु-साध्वीजी का समागम अपने क्षेत्र में होने पर ही यह व्रत करना लाभदायक रहता है क्योंकि सुपात्र दान देने के लिए ही यह तप किया जाता है। अष्टम भक्त (तेला) करके चौथे दिन (पारणे के दिन) मुनिराज को गोचरी बहिरा कर उड़द का बाकुले का पारणा करना चाहिए । आयम्बिल का प्रत्याख्यान करना वा HOME Sharel TAMA . .... --- ..:5:SKARG/ Jain Education international ormation
SR No.210922
Book TitleJain Sadhna me Tap ke Vividh Rup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGotulal Mandot
PublisherZ_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf
Publication Year1976
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ritual
File Size2 MB
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