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________________ 3-मन All करना पड़ता है, विचरण भी करना ही पड़ता है। कता उत्पन्न करती है। जो निर्भीक है वह कायरता इन सामान्य व्यापारों में जो स्थावर जीवों की का आचरण कर ही नहीं सकता। अहिंसा और हिंसा हो जाती है, उससे भी वह सर्वथा बचा नहीं शौर्य दोनों ऐसे गुण हैं जो आत्मा में साथ-साथ ही रह सकता। इस सन्दर्भ में भी विवेकपूर्वक गृहस्थ निवास करते हैं। शौर्य का यह गुण जब स्वय 6 को इस विधि से कार्य सम्पन्न करने चाहिए कि यह आत्मा के द्वारा ही प्रकट किया जाता है तब वह हिंसा यथासम्भव रूप से न्यूनतम रहे। अहिंसा के रूप में व्यक्त होता है और जब काया ___गृहस्थ जनों के लिए विरोधी हिंसा का सर्वथा द्वारा उसकी अभिव्यक्ति होती है, तो वह वीरता परित्याग भी इसी प्रकार पूर्णतः शक्य नहीं कहा कहलाने लगती है। जा सकता। गृहस्थ इतना अवश्य कर सकता है, जैन धर्म पर आई विपत्ति को जो मूक द और उसे ऐसा करना चाहिए कि वह किसी से बनकर देखता रहे, उसका प्रतिकार न करे-वह अकारण विरोध न करे। किन्तु यदि विरोध की सच्चा अहिंसक जैनी नहीं कहला सकता। धर्मउत्पत्ति अन्य जन की ओर से उसके विरुद्ध हो- रक्षण के कार्य को हिंसा की संज्ञा देना भी इसी तो उसे अपनी रक्षा का प्रयत्न करना ही होगा। प्रकार की कायरता मात्र है। ऐसा ही देश पर उस पर रक्षा का दायित्व उस समय भी आ जाता आई विपत्ति के प्रसंग में समझना चाहिए। यह र है, जब कि दुर्बल जीव पर प्राणों का संकट हो सब रक्षार्थ किये गये उपाय हैं। रक्षा का प्रयत्न न / और वह उससे अवगत हो / स्वयं बचना और अन्य करने में अहिंसा की कोई गरिमा नहीं रहती। 5 1 को बचाना दोनों ही उसके लिए अनिवार्य हैं। अहिंसा तेजरहित नहीं बनाती, वह अपना सब अहिंसा की दुहाई देते हुए ऐसे अवसरों पर आत्म- कुछ नष्ट करा देना नहीं सिखाती। अहिंसा दास सो रक्षा का प्रयत्न न करते हुए आक्रमण को झेलते बनने की प्रेरणा भी नहीं देती। इतिहास साक्षी है रहना या दुबककर घर में छिप जाना-अहिंसा का कि जब तक भारत पर अहिंसा-व्रती जैन राजाओं र लक्षण नहीं है। यह तो मनुष्य की कायरता होगी का शासन रहा, वह किसी भी विदेशी आक्रान्ता के जिसे वह अहिंसा के आचरण में छिपाने का प्रयत्न समक्ष नतमस्तक नहीं हुआ, किसी के अधीनस्थ / करता है / ऐसा आचरण अहिंसक जन के लिए भी नहीं रहा / अहिंसा प्रत्येक स्थिति में मनुष्य के | समीचीन नहीं कहा जा सकता / अहिंसा कायरों के चित्त को स्थिर रखती है, कर्तव्य का बोध कराती लिए नहीं बनी, वरन् वह तो धीरों और वीरों का है और उस कर्त्तव्य पर उसे दृढ़ बनाती है / यही || एक वास्तविक लक्षण है / ऐसा माना जाता है कि अहिंसा गृहस्थ को आत्म-गौरव से सम्पन्न बनाती ( ऐसी अहिंसा (कायरतामूलक) की अपेक्षा तो हिंसा है, उसे निर्भीक और वीर बनाती है। कहीं अधिक अच्छी होती है। अहिंसा तो निर्भी 00000 576 कुसुम अभिनन्दन ग्रन्थ : परिशिष्ट साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 6000
SR No.210889
Book TitleJain Sanskruti aur uska Avadan Jainachar ka Pran Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupamashreeji
PublisherZ_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf
Publication Year1990
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ahimsa
File Size2 MB
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