________________ जैन योग : उद्गम, विकास, विश्लेषण, तुलना | 356 000000000000 13 स्वविषया सम्प्रयोगे चित्तस्वरूपानुकार इवेन्द्रियाणां प्रत्याहारः ।-योगसूत्र 2-54 14 देशबन्धश्चित्तस्य धारणा ।-योगसूत्र 3, 1 15 तत्र प्रत्ययकतानता ध्यानम् ।-योगसूत्र 3,2 16 तदेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरूपशून्यमिव समाधिः / -योगसूत्र 3, 3 17 शुचं क्लमयतीति शुक्लम्-शोकं ग्लपयतीत्यर्थः / -तत्त्वार्थश्लोकवातिक 1 18 आज्ञाऽपायविपाकसंस्थानविचयाय धर्ममप्रमत्तसंयतस्य ।-तत्त्वार्थसूत्र 6.37 16 पृथक्त्वैकत्ववितर्कसूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरतक्रियानिवृतीनि / -तत्त्वार्थसूत्र 6.41 20 आत्मा के मूल गुणों का घात करने वाले / 21 तत्र शब्दार्थज्ञानविकल्पैः संकीर्णा सवितर्का समापत्तिः / --योगसूत्र 1.42 22 ज्ञेयं नानात्व श्रुतविचारमैक्य श्रु ताविचारं च / सूक्ष्मक्रियमुत्सन्नक्रियमिति भेदैश्च चतुर्धा तत् // 11.5 23 स्मृति परिशुद्धौ स्वरूपशून्येवार्थमात्र निर्भासा निर्वितर्का।--योगसूत्र 1.43 24 एतयैव सविचारा निर्विचारा च सूक्ष्मविषया व्याख्याता |--योगसूत्र 1.44 25 अष्टोत्तरशेतोच्छु वास: कायोत्सर्गः प्रतिक्रमे / सान्ध्ये प्राभातिके वार्ध-मन्यस्तत्सप्तविंशतिः / / सप्तविंशतिरुच्छ वासाः संसारोन्मूलनक्षमे। सन्ति पञ्च नमस्कारे, नवधा चिन्तिते सति ।-अमितिगति श्रावकाचार 6.65-66 26 श्रुतसिन्धोगुरुमुखतो, यदधिगतं तदिह दर्शितं सम्यक् / अनुभवसिद्धमिदानी, प्रकाश्यते तत्त्वमिदममलम् ।।-योगशास्त्र 121 ADD पुष्पा HINDI TIT UNITY VAAN जीवदया दम सच्चं अचोरियं बंभचेर संतोसे / सम्मदसण-णाणे तओ य सीलस्स परिवारो।। -शीलपाहुड 16 जीव दया, दम, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, सन्तोष, सम्यग्दर्शन, ज्ञान और तपयह सब शील का परिवार है / अर्थात् शील-सदाचार के अंग हैं। ---- -0--0--0--0-0 10 -~- ..SBreast.hora manelibrary.org Jai Education interna