________________ 154 कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन प्रन्थ : षष्ठ खण्ड 'मुद्रा में खड़े हैं। ल. पहली शती ई० पू० की ही पार्श्वनाथ की एक अन्य मूर्ति बक्सर (भोजपुर, बिहार) के चौसा ग्राम से भी मिली है, जो सम्प्रति पटना संग्रहालय (क्रमांक 6531) में सुरक्षित है। इस मूर्ति में पार्श्वनाथ सात सर्पफणों के छत्र से शोभित हैं और उपर्युक्त मूर्ति के समान ही निर्वस्त्र और कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं / इन प्रारम्भिक मूर्तियों में वक्षःस्थल में श्रीवत्स चिन्ह नहीं उत्कीर्ण है, जो जिन-मूर्तियों को अभिन्न विशेषता रही है / श्रीवत्स चिन्ह का उत्कीर्णन सर्वप्रथम ल० पहली शती ई० पू० में मथुरा की जिन-मूर्तियों में प्रारम्भ हुआ। ये मूर्तियां आयागपटों पर उत्कीर्ण हैं / लगभग इसी समय मथुरा में ही सर्वप्रथम जिनों के निरूपण में ध्यानमुद्रा प्रदर्शित हुई। जैन कला को सर्वप्रथम पूर्ण अभिव्यक्ति मथुरा में मिली / यहाँ की शुग-कुषाण काल की जैन मूर्तियां जैन प्रतिमाविज्ञान के विकास की प्रारिम्भक अवस्था को दरशाती हैं / साहित्यक और आभिलेखिक साक्ष्यों से ज्ञान होता है कि मथुरा का कंकाली टीला एक प्राचीन जैन स्तूप था। कंकाली टीले से एक विशाल जैन स्तूप के अवशेष और विपुल शिल्प सामग्री मिली है। यह शिल्प सामग्री ल० ई० पू० 150 से 1023 ई० के मध्य की है / इस प्रकार मथुरा की जैन मूर्तियाँ आरम्भ से मध्ययुग तक के प्रतिमाविज्ञान की विकास शृंखला उपस्थित करती हैं / मथुरा की शिल्प सामग्री में आयागपट, स्वतन्त्र जिन-मूर्तियाँ, जिन चौमुखी (या सर्वतोभद्रिका) प्रतिमा, जिनों के जीवन से सम्बन्धित दृश्य एवं कुछ अन्य मूर्तियाँ प्रमुख हैं। कुषाण काल में जिनों के साथ प्रतिहार्यों का चित्रण प्रारम्भ हो गया, पर आठ प्रारम्भिक प्रतिहार्यों का अंकन गुप्त काल के अन्त में ही प्रारम्भ हुआ। प्रतिमा लक्षण के विकास की दृष्टि से गुप्तकाल (ल० 275-550 ई०) का विशेष महत्व रहा है। जिनों के साथ लांछनों एवं यक्ष-यक्षी युगलों का निरूपण गुप्तकाल में ही प्रारम्भ हुआ। राजगिरि (बिहार) की नेमिनाथ एवं भारत कला भवन, वाराणसी (क्रमांक 161) की महावीर मूर्तियों में सर्वप्रथम लांछन (शंख और सिंह) और अकोटा (गुजरात) की ऋषभनाथ मूर्ति में यक्ष-यक्षी युगल निरूपित हुए। 1 द्रष्टव्य-शाह, यू० पी०, स्टडोज इन जैन आर्ट, बनारस, 1655, पृ० 8-6, एन अर्ली ब्रोन्स इमेज आव पार्श्वनाथ इन दि प्रिंस आव वेल्स म्युजियम, बम्बई, बुलेटिन प्रिन्स आव वेल्स म्युजियम आव वेस्टर्न इण्डिया, अं० 3, 1952-53, पृ० 63-65. 2 द्रष्टव्य-प्रसाद, एच० के०, जैन ब्रोन्जेज इन दि पटना म्यूजियम, महावीर जैन विद्यालय गोल्डन जुबली वाल्यूम, बम्बई, 1968, पृ० 275-80%; शाह, यू० पी०, अकोटा ब्रोन्जेज, फलक, 1 बी. 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org