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________________ तलवार खण्डित हो चुकी है। यह बाएँ हाथोंमें दाल व पद्म पकड़े हुए हैं। देवीने सुन्दर आभूषण धारण कर रखे हैं। शीश और सर्प फणोंके ऊपर ध्यानी तीर्थकरकी मूर्ति है। पैरोंके पास वाहन सर्प बना है। विक्टोरिया एण्ड एलबर्ट संग्रहालय, लन्दनमें प्राप्त देवीकी एक मूर्ति पार्श्वनाथको मेघकुमारसे बचाते हुए नागरागकी पत्नी नागिनी पद्मावतीके रूपमें पाषाणमें उत्कीर्ण हुयी है। यह देवी पार्श्वनाथके वाँयी ओर खड़ी है। इसके हाथोंमें छत्र है जो तीर्थकरके ऊपर उठाए हुये है। यह मूर्ति अपने प्रकारका बेजोड़ उदाहरण है। यह वर्धनकालकी सातवीं शतीकी महानतम कृतियोंमें आती है। अम्बिका और उसकी प्रतिमाएँ __ श्वेताम्बर आचार्य गुणविजय गणिने अपने नेमिनाथचरितमें अम्बिकाका स्वरूप वर्णित किया है। इसीके अनुसार दिगम्बर मतावलम्बी भी इसे सिंहवाहनी द्विभुजा वाली मानते हैं। इसका विस्तृत वर्णन प्रतिष्ठासारसंग्रहालय तथा प्रतिष्ठासारोद्धारमें मिलता है। विचार करनेसे लगता है कि यह देवी सिंहवाहिनी दुर्गा, अम्बा, कुममण्डिता, कुशमण्डीसे मिलती है। इसके बादके दो नाम भी दुर्गाके ही हैं। गन्धावलमें प्राप्त अम्बिकाकी मूर्ति नेमिनाथकी यक्षिणीके रूपमें दिखायी गयी है। इसका केवल ऊपरका भाग मिलता है। इसके कानों में कुण्डल तथा गलेमें हार दिखाये गये हैं। दाहिना हाथ खण्डित है । बाँये हाथमें बालक पकड़े हुए है। आम्रवृक्षके नीचे देवीका अंकन हुआ है। यहाँ बानर फल खाते दिखाये गये हैं। प्रतिमाके ऊपरी भागमें शीश रहित तीर्थंकर अंकित किये गये हैं। यह प्रतिमा पूर्ण रूपसे सुन्दर रही होगी। अम्बिकाकी एक प्रतिमा त्रिपुरासे भी मिली है। देवी वाहनसिंह पर आसीन है। इसके शीशके ऊपर नेमिनाथ भी ध्यानस्थ मूर्ति के साथ उसके दाँयी ओर बलराम और बाँयी ओर कृष्ण अपने आयुधोंके साथ दर्शाये गये हैं। देवीके पैरोंके पास गणपति कुवेर भी प्रतिष्ठित हैं । यह मूर्ति धार्मिक सहिष्णुताका उदाहरण है। अम्बिकाकी एक अन्यमूर्ति बारहवीं सदी (चैदिकाल) की भी मिलती है। जो राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्लीमें है। इसमें अम्बिकाका आसन एक वृक्ष के नीचे दिखाया गया है। इसके गोदमें बालक है। वाहनसिंह बाँये पैरके समीप बैठा है। चतुर्हस्ता देवीके हाथोंमें आम्रलुम्बि व पद्म हैं । इसने खण्डित वस्तुधारण कर रखी है । पेड़के ऊपर ध्यान अवस्थामें नेमिनाथ अंकित हैं। इसके पैरोंके समीप भक्तगण दिखाये गये हैं । काँस्यकी बनी एक जैन अम्बिका मूर्ति तो चालुक्य कला (नवीं सदी) का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है । इसमें अम्बिका अन्य देवियों (चक्रेश्वरी, विद्या देवियों) के साथ आयी है। इसमें पार्श्वनाथ, महावीर तथा ऋषभनाथ अंकित किये गये हैं। इसमें सिंहासनके दाहिनी ओर एक देबी दिखाई गई है और वायी और सिंह पर अम्बिका बैठी है। उनके दाहिने हाथमें आम्रलुम्बि तथा वह बायें गोदमें बालक पकड़े हुये है । सिंहासनकेसामने धर्मचक्र सहित दो मग, भक्त और गहोंका अंकन हुआ है। आकोटामें ग्यारहवीं शतीकी प्राप्त अम्बिकाकी मूर्ति सुन्दर है। वह सिंहपर ललितासनपर बैठी है । इसके दाहिने हाथमें आम्रलुम्बि है । यह बाँये हाथसे छोटे पुत्र प्रियंकरको पकड़े हैं। बड़ा पुत्र शुभंकर बाँयी ओर खड़ा है । शीशके पीछे ध्यानी नेमिनाथकी मूर्ति अंकित है । मालवा क्षेत्रकी परमार कालीन अम्बिका मूर्ति भी सिंहपर ललितासनमें बैठी हैं। ऊपरके दोनों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210818
Book TitleJain Pratimao me Sarasvati Chakreshwari Padmavati aur Ambika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKadambari Sharma
PublisherZ_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf
Publication Year1980
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Tirth Pratima
File Size3 MB
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