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कारीतलाई नामक स्थानसे प्राप्त आदिनाथ ध्यान मुद्रामें हैं । इसके सिंहासनके बायों और यक्षी चक्रेश्वरीकी आसन मूर्तियाँ हैं । परन्तु यहाँ एक आदिनाथकी मूर्ति में यक्षी चक्रेश्वरीके स्थानपर नेमिनाथकी यक्षी अम्बिका का अंकन हुआ है जो असाधारण प्रतीत होता है । यह मूर्ति १०वीं से १२वीं सदीकी चेदिकालीन है । ब्रिटिश संग्रहालय, लन्दनसे प्राप्त एक मूर्ति में वाहन गरुड़ दाहिने हाथोंमें फलोंका गुच्छा और अक्षमाला, बायें हाथोंमें पद्म तथा परशु हैं । अन्य हाथ खण्डित हैं । यह धमिल्ल रूपमें सुसज्जित है । यहाँकी एक अन्य मूर्ति पूर्व मध्ययुगीन मालूम पड़ती है। इसके दोनों ओर एक-एक सेविका त्रिभंग मुद्रा में खड़ी हैं। ऊपरी भागमें ध्यानी तीर्थंकर हैं । देवीके वाहन गरुड़के दोनों हाथ अंजलिबद्ध हैं । ये दोनों मूर्ति चन्देल कालकी बनी प्रतीत होती हैं। श्वेताम्बर चक्रेश्वरी मूर्तिके आठ हाथ मिलते हैं जिनमें तीर, चक्र, धनुष, अंकुश, वज्र, वरदमुद्रा आदि होते हैं । इसके विपर्यासमें, दिगम्बर बारह और चार हाथकी मूर्तियोंको मान्यता देते हैं । बारह हाथ वाली मूर्ति में आठमें चक्र होते हैं। दो में वज्र तथा एक हाथ वरद मुद्रामें होता है । चतुर्हस्तामें दो हाथमें चक्र दिखायी पड़ते हैं । पद्मावती (यक्षिणी) और उसकी प्रतिमायें
हेमचन्द्रने पार्श्वनाथचरित्रमें पद्मावतीके स्वरूपका वर्णन किया है । वह पार्श्वनाथकी यक्षिणी है ।
गुजरात एवं राजस्थानसे प्राप्त पद्मावतीकी दो मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं । प्रथममें यक्षी पद्मासनमें सर्प के ऊपर तीन फणोंके नीचे बैठी है। ऊपर ध्यानी तीर्थंकर की मूर्ति है । इनके ऊपर के दो हाथों में फल तथा कमल हैं । नीचेका दाहिना हाथ वरद मुद्रा तथा बायेंमें घट है। पैरोंके समीप वाहन कुर्कुट उत्कीर्ण है । यह मूर्ति १७वीं शतीकी है । द्वितीय प्रतिमामें वह गोल आसनमें ललित मुद्रामें बैठी है। उसके ऊपर के हाथों में अंकुश पाश है । विचला दायाँ हाथ वरद मुद्रामें है और बायेंमें फल है । अठारहवीं सदीमें बनी इस मूर्तिके ऊपरी भागमें ध्यानी तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं ।
चित्र २. पद्मावती
गाहड़वाल, १२वीं शती, उत्तरप्रदेश
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उत्तर प्रदेशमें गाहड़वाल कालीन बारहवीं सदीकी प्राप्त पद्मावतीकी मूर्ति मूर्तिकलाका एक अच्छा उदाहरण है (चित्र २) । यह देवी ललितासन पर विराजमान । इसके दायें हाथमें फल तथा बाएँ में सर्प है । इसके शीशके ऊपर भी सर्प है जिसके नौ फण हैं । उसका वाहन सर्प बाँएँ पैरके पास अंकित है ।
ब्रिटिश संग्रहालय, लन्दनमें भी एक परमार युगीन (बारहवी सदी) देवीकी मूर्ति है । यह देवी त्रिभंग मुद्रामें सर्प फणोंके नीचे खड़ी है। इसके दाहिने हाथमें एक नाग व तलवारकी मूँठ है जिसमें
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