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नेमिचन्द्र के अनुसार" - मूल शरीर को न छोड़कर तैजस कार्मण रूप उत्तर देह के साथ-साथ जीव प्रदेशों के शरीर से बाहर निकलने को समुद्घात कहते हैं । यद्यपि यह सन्दर्भ जीव तत्त्व से जुड़ा है, जबकि हमारा विवेचन अजीव तत्त्व से संबंधित है। अतः यहाँ कुछ विरोधाभास हो सकता है, लेकिन उसे दूर करने के लिए हम इतना ही कहना चाहेंगे कि व्यतीकरण की पराकाष्ठा को समझने के लिए इससे अच्छा सन्दर्भ शायद उपलब्ध न हो, शायद यह भी एकपक्षीय मत ही हो, परंतु विवादास्पद नहीं । वैज्ञानिकों ने भी इस दिशा में प्रयोग किए। यद्यपि इनका चिंतन और प्रयोग इतना ज्यादा व्यापक नहीं है लेकिन परमाण्विक विखण्डन तथा इसी तरह के अन्यान्य प्रकल्पों के माध्यम से जो वैज्ञानिक तथ्य प्रकाश में आ रहे हैं वे वस्तुतः परमाणुओं के व्यतीकरण के सिद्धांत को ही संपुष्टि प्रदान करते प्रतीत होते हैं।
इस प्रकार जैन एवं वैज्ञानिक परमाणुवादी अवधारणा को कुछ मान्यताओं के आधार पर तुलनात्मक रूप में प्रस्तुत करने का एक प्रयास किया गया है। कहीं-कहीं यह तुलना अत्यन्त सार्थक प्रतीत होती है, तो किसी क्षण इसमें अल्प व्यतिक्रम भी आया है जो स्वाभाविक भी है। उस अंतर का मुख्य कारण परंपरा एवं प्रणालीगत व्यवस्था है।
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