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- यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रदय - जैन दर्शन द्रव्य का बोधक है। प्रायः पदार्थ कणात्मक रूप (Particle हैं। एक अनुमान के अनुसार १ रज्जु लगभग १.५४x (१०)२१ form) में पाया जाता है, जबकि ऊर्जा कम्पायमान रूप में। द्रव्य मील के बराबर होता है।४१ को ऊर्जा रूप में एवं ऊर्जा को द्रव्य रूप में एक विशिष्ट वातावरण
" परमाण्विक व्यतीकरण एवं समाप्सीकरण में परिवर्तित किया जा सकता है। यह प्रयोगसिद्ध तथ्य है।
जैन चिंतकों ने यह स्पष्ट किया है कि परमाणु में परमाणु का ऋणात्मक अथवा तरंगात्मक स्वरूप इलेक्ट्रॉन
सूक्ष्मपरिणामावगाहन शक्ति है। इसे स्पष्ट करते हुए आचार्य की गतिशीलता पर आधारित है। अगर हम किसी गतिशील कण
- पूज्यपाद कहते हैं।२ - सूक्ष्म रूप से परिणत हुए पुद्गल परमाणु की सही स्थिति का पता करना चाहें तो एक साथ गति एवं स्थिति की सही अवस्था को पता नहीं नहीं कर सकते। क्योंकि
आकाश के एक-एक प्रदेश पर अनन्तानन्त ठहर सकते हैं। विविध कारणों से इनकी अवस्था एवं स्वरूप आदि में परिवर्तन
कहने का तात्पर्य यह है कि परमाणु में प्रचय एवं संकोच की आता रहता है। हाइजेनबर्क ने स्पष्ट रूप से यह मत प्रतिपादित
अत्यंत व्यापक क्षमता है जिनके कारण थोड़े से परमाणु एक
विस्तृत आकाश खण्ड को घेर लेते हैं, वहीं दूसरी तरफ कभी किया है।८ - इलेक्ट्रॉन के समान गतिशील कण की सही-सही स्थिति तथा संवेग (या वेग) दोनों एक साथ पता लगाना संभव
कभी वे परमाणु घनीभूत होकर बहुत छोटे आकाश देश में समा नहीं है। हाँ, उसके अधिकतम संभव (Probability) स्वरूप को
जाते हैं। परमाणुओं का यह संकोच एवं प्रचय क्रमशः समासीकरण अवश्य पता किया जा सकता है।
एवं व्यतीकरण कहलाता है। वैज्ञानिकों ने भी इस क्षेत्र में अनुसंधान
किए हैं और उन्होंने कुछ ऐसी निविड (भारी) वस्तुओं अथवा . चूँकि इलेक्ट्रॉन तरंग रूप में गतिमान रहता है और प्रत्येक
तत्त्वों का पता लगाया है जो परमाणुओं के संकोच करने की तरंग की गति एक विशेष रूप में चलती है। कभी यह महत्तम
क्षमता को प्रदर्शित करता है। वेग को प्राप्त कर महत्तम अवस्था में पहँच जाती है तो दूसरी तरफ आवर्ती क्रम में यह दूसरी दिशा में उसी तल के निम्नतम
सामान्यतया सोना, शीशा, प्लेटनिम, पारा आदि भारी पदार्थ
माने जाते हैं। समान माप के इन तत्त्वों के टकडे और लकडी के भाग तक पहुँच जाती है। कहने का अर्थ यह है कि इलेक्ट्रॉन की
टुकड़े के भार में कितना अंतर पाया जाता है इस तथ्य से हम भली गति अधिकतम एवं न्यूनतम दोनों रहती है। इस गति का मापन भी वैज्ञानिकों ने किया है जो अत्यंत जटिल एवं उत्कृष्ट संवेदनशील
भांति विदित हैं। इसका कारण परमाणुओं की सघनता, उनकी
निविडता है। जितने आकाश खण्ड को उस लकड़ी के छोटे से यंत्रों द्वारा संभव है। इसे मात्र विचार रूप में व्यक्त कर देना
परमाणुओं ने घेरा, उतने ही आकाश खण्ड में अधिकाधिक परमाणु विज्ञान की महानता को न्यून करना मात्र ही होगा। परमाणु की
एकत्रित होकर धात्विक पदार्थो-सोना, प्लेटनिम आदि के रूप में गति के संबंध में हम जैनाचार्यों द्वारा प्रतिपादित विचारों को
रह सकते हैं। इसी तरह अन्य ठोस पदार्थों के बारे में जाना जा उद्धृत करना चाहेंगे।
सकता है जो अपनी सघनता से एक छोटे से आकाश खण्ड में जैनों के अनुसार परमाणु की स्वाभाविक गति सरल रेखा रहते हैं और अपने अंदर असीमित मात्रा में परमाणुओं को संग्रहीत में और वैभाविक गति वक्र रेखा में होती है। परमाणु कम से कम किए रहते हैं। परमाणुओं का यह असीमित संग्रह उसे इतना अधिक एक समय में एक प्रदेश का अवगाहन कर सकता है और भार प्रदान करता है जिसके संबंध में मनुष्य परिकल्पना नहीं कर अधिक से अधिक उसी समय में सम्पूर्ण लोकाकाश का।३९ सकता। आज वैज्ञानिकों ने एक ऐसे छोटे तारे की खोज की है समय काल की सबसे छोटी इकाई है जबकि प्रदेश आकाश के जिसके एक क्यूबिक इंच का वजन १६७४० मन है। छोटे से छोटे अविभागी अंश का नाम है। लोकाकाश आकाश जहाँ तक व्यतीकरण का प्रश्र है. इस संदर्भ में हम जैनाचार्यो का वह भाग है, जिसमें धर्म, अधर्म, पुद्गल, काल, जीव सभी के इस कथन पर विचार कर सकते हैं.३-- जीव असंख्यात पाए जाते हैं। दूसरे शब्दों में हम इसे षड्द्रव्यों का समवाय कह प्रदेशी होने पर भी संकोच विस्तारशील होने से कर्म के अनुसार सकते हैं। संपूर्ण लोकाकाश १४ रज्जु परिमाण वाला है। रज्जु प्राप्त छोटे या बड़े शरीर में तत्प्रमाण होकर रहता है। लेकिन जैनों का एक माप है जिसके संबंध में कई तरह की अवधारणाएँ समुद्घात-काल में इसकी लोकपूरण अवस्था होती है। आचार्य
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