________________ 5/ जैन न्यायविद्याका विकास : 13 शतीके विद्वान् गलेश उपाध्यायसे उद्भत हुआ और पिछले तीन-चार दशक तक अध्ययन, अध्यापनमें विद्यमान रहा। इसके बाद जैन न्यायका कोई मौलिक या व्याख्याग्रन्थ लिखा गया हो, यह ज्ञात नहीं / फलतः उत्तरकालमें जैनन्यायका प्रवाह अवरुद्ध हो गया / इस बीसवीं शताब्दीमें अवश्य कतिपय जैन दार्शनिक एवं जैन नैयायिक हए, जो उल्लेखनीय है / इन्होंने प्राचीन आचार्यों द्वारा लिखित जैनदर्शन और जैन न्यायके ग्रन्थोंका न केवल अध्ययन-अध्यापन किया, अपितु उनका राष्ट्रभाषा हिन्दीमें अनुवाद एवं सम्पादन भी किया है। साथमें उनकी अनुसंधान पूर्ण विस्तृत प्रस्तावनाएँ भी लिखी हैं, जिनमें ग्रन्थ एवं ग्रन्थकारके ऐतिहासिक परिचयके अतिरिक्त ग्रन्थगत विषयोंका भी तुलनात्मक एव समीक्षात्मक आकलन प्रस्तुत किया गया है। उदाहरणके लिए सन्त प्रवर न्यायाचार्य श्री गणेशप्रसाद वर्णी, न्यायाचार्य पं. माणिक्यचंद कौन्देय, पं० सुखलाल संघवी, डॉ० पण्डित महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य, पं० दलसुख मालवणिया और प्रस्तुत आलेखके लेखक (डॉ० पं० दरबारीलाल कोठिया) के नाम विशेष उल्लेखनीय है / वर्णीजीने अनेक छात्रोंको जैनदर्शन एवं न्यायमें प्रशिक्षित किया, श्री कौन्देयने आचार्य विद्यानंदके तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक भाष्यका सात खण्डोंमें हिन्दी रूपान्तर किया है। श्री संघवीने प्रमाणमीमांसा, ज्ञानबिन्दु, सन्मतितर्क, जैनतर्कभाषा आदि तर्क ग्रन्थोंका वैदुष्यपूर्ण सम्पादन व उनकी प्रस्तावनायें लिखी है। डॉ. पं० महेन्द्रकुमारने न्यायविनिश्चय-विवरण, सिद्धिविनिश्चयटीका, न्यायकुमुदचन्द्र, प्रमेयकमलमार्तण्ड, अकलंकग्रन्थत्रय, तत्त्वार्थवार्तिक भाष्य, तत्त्वार्थवृत्ति आदिका विद्वत्तापूर्ण सम्पादन एवं उनकी अनुसन्धानपूर्ण प्रस्तावनायें लिखी है। श्री मालवणियाने "आगमयुगका जैनदर्शन" आदिका लेखन-सम्पादन किया है। डॉ० कोठियाने न्यायदीपिका, आप्तपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा, पत्र परीक्षा, स्याद्वादसिद्धि, प्रमाणप्रमेयकलिका, द्रव्यसंग्रह आदि ग्रन्थोंका सम्पादन एवं हिन्दी अनुवाद किया तथा उनकी शोधपूर्ण विस्तृत प्रस्तावनाएँ उनके साथ निबद्ध की हैं। इसके अतिरिक्त "जैन तर्कशास्त्रमें अनुमान विचार, जैनदर्शन और प्रमाणशास्त्र परिशीलन, जैन तत्त्वज्ञानमीमांसा आदि मौलिक रचनाएँ भी हिन्दीमें प्रस्तुत की हैं।" पं० कैलाशचन्द्र शास्त्रीका जैनन्याय भी उल्लेखनीय है। इस प्रकार जैन ताकिकोंने अपनी तार्किक रचनाओं द्वारा जैन वाङ्मयके भण्डारको समृद्ध किया है। और जैन न्यायका उल्लेखनीय विकास किया / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org