________________ 625 जैन धर्म का एक विलुप्त सम्प्रदाय यापनीय नाम गणे निग्गये / कल्पसूत्र, सूत्र-२१४ 28. स्थानाङ्ग, 7/140-142 व संग्रहणी गाथा 16. देखिये बोईं- हिन्दी-गुजराती कोश (अहमदाबाद-१९६१) पृ. 29. आवश्यक मूलभाष्य, 145-148 348 - उद्धृत आवश्यक नियुक्ति हरिभद्रीय वृत्ति, पृ. 215-216 17. (अ) प्रो. एम. ए. ढाकी से व्यक्तिगत प्राप्त सूचना पर आधारित 30. आवश्यक नियुक्ति 79-783 (ब) देखिये बोट- हिन्दी-गुजराती कोश, पृ. 348 31. जैन साहित्य का इतिहास, पूर्वपीठिका पृ. 373 18. कल्पसूत्र स्थविरावली, 207-224 32. वही, पृ. 372 19. नन्दीसूत्र (मधुकर मुनि), गाथा, 25-50 33. जैनसाहित्य का इतिहास, पूर्वपीठिका, पृ. 372 20. पट्टावलीपरागसंग्रह कल्याण विजयगणि के प्रारम्भिक अध्याय 34. वही, पृ. 272-273 21. (अ) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तित्थसि सत्त पवयणणिण्हगा 35. आवश्यक मूलभाष्य गाथा, 145-148, उद्धृत आवश्यक नियुक्ति पण्णत्ता, तं जहा-बहुरता, जीवपएसिया, अवत्तिया, सामुच्छेइया, हरिभद्रीय वृत्ति दोकिरिया, तेरासिया अवद्धिया / / 36. जैन शिलालेख संगह, भाग 2, अभिलेख सं 102-103 एएसि णं सत्तण्हं पवयणणिण्हगाणं सत्तं मम्मायरिया हुत्था, तं 37. आवश्यकनियुक्ति हरिभद्रीयवृत्ति, पृष्ठ 216-218 जहा- जमाली, तीसगुत्ते, आसाढे, आसमित्ते, गंगे, छलुए, 38. Jain Stupas and other Antiquities of Mathuraगोट्ठामाहिले / एतेसि णं सत्तण्ह पवयणणिण्हगाणं सत्त उप्पत्तिणगरा V.A. Smith, Plate No. 10,15,17, pp 24.25 हुत्था, तं जहा - 39. (अ) कल्पसूत्र / स्थानाङ्ग, सत्तम, ठाणं 140-142, पृष्ठ संख्या, 753-754; (आ) Jain Stupas and other Antiquities of (ब) बहुरय जमालिपंभवा जीवपएसस य तीसगुत्ताओ। Mathura- V.A. Smith, Plate No. 10,15,17, pp अव्वत्ताऽऽसाढाओ सामुच्छेयाऽऽसमित्ताओ // 779 / / 24.25 गंगाओ दोकरिया छलुगा तेरासियाण उप्पत्ती। 40. Annals of the B. O. R. I. XV-III. IV, pp. 198 ff, थेरा य गोट्ठमात्यि पुट्ठमबद्धं परूविंति // 780 // Poona, 1934; सावत्थी उसनपुर सेयविया मिहिल उल्लुगतीरं / देखें अनेकान्त, वर्ष 28, किरण१, पृ० 134 पुरिमंतरंजि दसपुर रतवीरपुरं च नगराइ / / 781 // 41. भद्रबाहुचरित -कोल्हापुर 1921, IV पृ० 135-154 देखें चोद्दस सोथस वासा चोद्दसवीसुत्तरां य दोण्णि सया / अनेकान्त, वर्ष 28, किरण 1 / अट्ठावीसा य दुवे पंचेव सया उ चोयाला // 782 / / 42. गोपच्छिकाः श्वेतावासाः द्राविडो यापनीयकाः / पंथ सया तुलसीया छच्चेव सया ण्वोत्तरा होति / नि: पिच्छिकश्चेति पंचैते जैनाभासाः प्रकीर्तिताः / / णाणुप्पत्तीय दुवे उप्पण्णा णित्वुए सेसा // 783 / / देखें-अनेकान्त, वर्ष 28 किरण. 1, पृ० 246 22. छब्बाससयाई नवुत्तराई तइया सिद्धिगयस्स वीरस्स / 43. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 3054 तो बोडियाण दिट्ठी रहवीरपुरे समुप्पण्णा / / 44. पं० बेचरदास दोशी स्मृति ग्रन्थ, सम्पादक : प्रो० एम. ए. ढाका रहवीरपुरं नयरं दीवगमुज्जाण अज्जकण्हे य / एवं प्रो० सागरमलजैन / पा. वि. शो० सं० से प्रकाशित, पृ० सिवभुइस्सूवहिंमि य पृच्छा थेराण कहणा य / / 68-73 ऊहाए पण्णत्तं बोडियसिवभूइत्तराहि इमं / 45. जैन शिलालेख संग्रह; भाग-२, लेख क्रमांक 99. मिच्छादसणमिणमो रहवीरपुरे समुप्पण्णं / / 46. वही, भाग 2, लेख क्रमांक 99 47. वही, भाग२, लेख क्रमांक 99,100 कोडिण्ण-कोट्टवीरा परंपराफासमुप्पण्णा / / 48. वही, भाग 2, लेख क्रमांक 105 -आवश्यक मूलभाष्य, 145-148, उद्धृत-आवश्यक नियुक्ति 49. वही भाग२, लेख क्रमांक 124 हरिभद्रीयवृत्ति, पृ० 215 50. वही, भाग 4, लेख क्रमांक 70 23. पट्टावली परागसंग्रह, कल्याणविजय जी 51. वही, भाग२, लेख क्रमांक 143 24. Jaina Stupas and Other Antiquities of India- 52. वही, भाग२, लेख क्रमांक 160 V.A. Smith, Plate No. 10,15,17pp. 24,25 53. Jainism in South India and Some Jaina Epi25. Ibid, pp.24-25. graphs- Desai P.B. p. 165. 26. जैन साहित्य का इतिहास, पूर्वपीठिका, पृ० 385 54. देखें -अनेकान्त, वर्ष 28, किरण१, पृ० 247 27. (अ) वही, पृ० 381 (ब) जैनहितैषी, भाग 13, अंक 9-10.55. (अ) Journal of the Bombay Historical Society, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org