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साध्य के बिना न होने का जिसमें निश्चय है, ऐसे विद्यानन्द अनुमान के इस लक्षण का समर्थन करते लिंग से जो लिंगी (साध्य अर्थ) का ज्ञान होता है उसे हुए एक महत्वपूर्ण युक्ति उपस्थित करते हैं । वे कहते अनुमान कहते हैं । हान, उपादान और उपेक्षा का ज्ञान हैं कि अनुमान के आत्मलाभ के लिए उक्त प्रकार का होना उसका फल है।
साधन और उक्त प्रकार का साध्य आवश्यक ही नहीं,
अनिवार्य है। यदि उक्त प्रकार का साधन न हो तो इस अनुमानलक्षण से स्पष्ट है कि साध्य का केवल साध्य का ज्ञान अनुमान प्रतीत नहीं होता। इसी गमक वही साधन अथवा लिंग हो सकता है जिसके तरह उक्त प्रकार का साध्य न हो, तो केवल उक्त अविनाभाव का निश्चय है। यदि उसमें अविनाभाव का प्रकार का साधनज्ञान भी अनुमान ज्ञात नहीं होता । निश्चय नहीं है तो वह साधन नहीं है। भले ही आशय यह है कि अनुमान के मुख्य दो उपादान हैंउसमें तीन रूप और पाँच रूप भी विद्यमान हों। जैसे साधनज्ञान और साध्यज्ञान । इस दोनों की समग्रता 'स श्याम: तत्पुत्रत्वात्, इतर पुत्रवत्', 'वज्र लोहतेख्यं होने पर ही अनुमान सम्पन्न होता है । पार्थिवत्वात्, काष्ठवत्' इत्यादि हेतु तीन रूपों और पाँच रूपों से सम्पन्न होने पर भी अबिनाभाव के अभाव
आचार्य माणिक्यनन्दि अकलंक के उक्त अनुमानसे सद्धत नहीं हैं, अपितु हेत्वाभास हैं और इसी से वे लक्षण को स्त्र का रूप देते हैं और उसे स्पष्ट करने के अपने साध्यों के गमक-अनुमापक नहीं हैं। इस सम्बन्ध लिए हेतु का भी लक्षण प्रस्तुत करते हैं। यथामें और विशेष विचार किया जा सकता है।
साधनात्साध्य विज्ञानमनुमानम् । विद्यानन्द ने अकलंकदेव का अनुमानलक्षण आदृत
साध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेतुः 124 किया है और विस्तारपूर्वक उसका समर्थन किया है।
हेमचन्द्राचार्य ने भी माणिक्यनन्दि की तरह यथा
अकलंक की ही अनुमान-परिभाषा अक्षरशः स्वीकार साधनात्साध्य विज्ञानमनुमान विदुर्बुमाः । की है और उसे उन्हीं की भाँति सूत्र रूप प्रदान
किया है। साध्याभावासम्भवनियमलक्षणात साधनादेव शक्याभिप्रेताप्रसिद्धत्वलक्षणस्य 'साध्यस्यैव यद्विज्ञानं
न्यायदीपिकाकार धर्मभूषण ने भी अकलंक का तदनुमानं आचार्या विदुः ।।
न्यायविनिश्चयोक्त अनुमान-लक्षण प्रस्तुत करके उसका
विशदीकरण किया है । इसके अतिरिक्त उन्होंने तात्पर्य यह कि जिसका साध्य के अभाव में न होने । उद्योतकर द्वारा उपज्ञ तथा वाचस्पति आदि द्वारा का नियम है ऐसे साधन होनेवाला जो शक्य (अबा- समथित 'लिंग परामर्शोऽनुमानम्'28 इस अनुमानलक्षण धित), अभिप्रेत (इष्ट) और अप्रसिद्ध साध्य का विज्ञान की समीक्षा भी उपस्थित की है। उनका कहना है कि है उसे आचार्य (अकलङ्क देव) ने अनुमान कहा है। यदि लिंगपरामर्श (लिंगज्ञान-लिंगदर्शन) को अनुमान
19. विद्यानन्द, त. श्लो. १।१३।२००, पृ. २०६ ; 20. वही, १।१३।१२०, पृ. १६७ ; 21, 22. वही, १।१३।१२०, पृ. १६७; 23. मणिक्यनन्दि, परीक्षामुख ३।१४; 24. वही, ३।१५; 25. प्रमा. मी. ११२।७ पृ. ३८ ; 26. धर्मभूषण न्याय दी. पृ. ६५, ६७ वीर सेवा मन्दिर, दिल्ली ; 27. वही, पृ. ६६ ; 28. उद्योतकर, न्याय वा. १।१।५, पृ. ४५।
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