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________________ रत्नलाल जैन महर्षि पतंजलि ने वैर-त्याग का उपाय अहिंसा को ही कहा है ___ अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैर-त्यागः' / अहिंसा को मनोकामनाओं की सिद्धि करने वाली कामधेनु की संज्ञा दी गई है दीर्घायुः पर रूपमारोग्यश्लाघनीयता। अहिंसायाः फलं सर्वं किमन्यत्कामदैव सा // गोस्वामी जी के शब्दों में अहिंसा के साधकों-आराधकों के दर्शन मात्र से जन्म-जन्मान्तर के पाप भी नष्ट हो जाते हैं।। तनकर, मनकर वचनकर देत न काहु दुख / तुलसी पातक झरत है, देखत वाको मुख // 3 पावन चरण-कमलों में नमस्कार किया है पन्नगे च सुरेन्द्रे च कौशिके पाद-संस्पृशि। निविशेषमनस्काय श्री वीरस्वामिने नमः // अनेक महोत्सवों पर देवेन्द्र शक्रेन्द्र के द्वारा श्रद्धा-सुमन अर्पित करने पर राग नहीं तथा चण्ड कौशिक आदि पर द्वेष नहीं; ऐसे समदृष्टि वीर भगवान् को नमस्कार / गली आर्य समाज, जैन धर्मशाला के पास, हाँसी (हरियाणा) 1. पातंजलयोगदर्शन 2 / 35 2. योगशास्त्र 2 / 35 3. दोहावली तुलसीदास 4. योग-शास्त्र हेमचन्द्राचार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210642
Book TitleJain Jainetar Darshano me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZ_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf
Publication Year1994
Total Pages3
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ahimsa
File Size295 KB
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