Book Title: Jain Jainetar Darshano me Ahimsa
Author(s): 
Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf

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________________ जैन-जैनेतर दर्शनों में अहिंसा रत्नलाल जैन भगवान् महावीर की मंगलमय वाणी है धम्मो मंगलमुक्किट्ठ....."मणो' । धर्म सर्वोत्कृष्ट मंगल है; अहिंसा, संयम और तप धर्म का वास्तविक स्वरूप है, जिस व्यक्ति का मन सदा धर्म में लीन रहता है, देवता भी उसे नमस्कार करते हैं। सभी धर्म दर्शनों में, अहिंसा को परम धर्म स्वीकार किया गया है। महाभारत में लिखा है अहिंसा परमो धर्मस्तथा अहिंसा परमो दमः। अहिंसा परमं मित्रमहिंसा परमसुखम् ।। -अहिंसा उत्कृष्ट धर्म है, परम मित्र है, परम सुख है। एक मनीषी का कथन है परस्पर-विवादानां धर्मग्रन्थानामहिंसा इत्यत्र एकरूपता । —जो विभिन्न धर्म-ग्रन्थों में अनेक विषयों में मतभेद है, वहाँ अहिंसा धर्म के विषय में सब में एकरूपता है सहमति है। भगवान् महावीर ने मन, वचन और काया-तीनों करणों पर संयम धारण करने के आदर्श को प्रतिष्ठित किया है तेसिं अच्छणजोएण, निच्चं होयव्वयं सिया । मणसा काय वक्केण, एवं हवइ संजए॥ मन, वचन और शरीर-इन में से किसी एक के द्वारा किसी प्रकार से भी जीवों की हिंसा न हो, ऐसा व्यवहार ही संयमी जीवन है। अन्यत्र इसी भाव की पुष्टि की है कर्मणा मनसा, वाचा, सर्वभूतेषु सर्वदा । अक्लेशजननं प्रोक्तमहिंसात्वेन योगिभिः ॥ -मन, वचन और कर्म से प्राणियों को कष्ट न पहुंचाना-इसे ही योगियों ने अहिंसा कहा है। १. दशवकालिक १:१ २. महाभारत, अनुशासन पर्व ११६:३८-३९ ३. दशवैकालिक ८।३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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