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________________ महाभारत का पावन सन्देश है जैन - जैनेतर दर्शनों में अहिंसा कर्मणा न नरः कुर्वन्, हिंसा पार्थिव सत्त्वम् । वाचा च मनसा चैव ततो दुःखात् प्रमुच्यते ॥ ' परम योगी पतंजलि ने मैत्री भाव - अनभिद्रोह को अहिंसा कहा हैतत्र अहिंसा सर्वदा सर्वभूतेषु अनभिद्रोह: । तीर्थंकर महावीर ने संयमपूर्ण व्यवहार को अहिंसा की संज्ञा दी है-अहिंसा निउणा दिट्ठा, सव्वभूएसु संजमो । अधिक सूक्ष्म रूप में अन्यत्र राग-द्वेष के भावों का सर्वथा अभाव ही अहिंसा कहा गया है । भगवान् बुद्ध ने जंगम और स्थावर जीवधारियों का प्राणघात स्वयं न करने, दूसरों से न करवाने तथा इसका अनुमोदन न करने के भाव को अहिंसा माना है पाणेन हाने न च घातयेय न चानुमन्याहनतं परेसं । सव्वेसु भूतेसु निधाय दण्डं, ये थावरा ये च वसन्ति लोके ॥ ४ एक अंग्रेज दार्शनिक ने अपनी काव्यमयी भाषा में इसे सर्वश्रेष्ठ धर्म माना है - The best religion is naught To injure by word, action or thought. अहिंसा महाव्रत को समुद्र की उपमा दी गई है, तथा अन्य सभी व्रत नदियों के समान भगवती अहिंसा में ही समा जाते हैं सव्वओ विनईओ, कमेण जह सायरम्मि निवडति । तह भगवई अहिंसा, सव्वे धम्मा सम्मिलति ॥ भगवती अहिंसा का माहात्म्य भगवती अहिंसा की महिमा का गुणगान भी अनुपम है एसा सा भगवती अहिंसा जा सा भीयाण विव सरणं । ... अहिंसा तस थावर सव्व भूय - खेमंकरी ॥ अहिंसा संसार रूपी मरुस्थल में अमृत का झरना है, अहिंसा कल्याणकारी माता के समान है Jain Education International अहिंसैव हि संसारमरावमृतसारणिः । ७ १. महाभारत, अनुशासन पर्व १७६ । ३ २. पातंजल योगदर्शन २३० ३. दशवैकालिक ८६ ९ ४. सुत्तनिपात धम्मिक-सुत्त ५. सम्बोधसन्तरी ५ ६. प्रश्नव्याकरण संवर-द्वार १ ७. योगसारशास्त्र २०५० १७३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210642
Book TitleJain Jainetar Darshano me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZ_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf
Publication Year1994
Total Pages3
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ahimsa
File Size295 KB
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