________________ 17 कथाएं हैं। यह कोश अधिकोष प्राकृत पद्यों में लिखित है कहीं-कहीं कुछ अंश में भी है। इसके रचयिता देवेन्द्र सूरि हैं और रचना वि. सं. 1958 में भरुकच्छ नगर भड़ौच में समाप्त के अनुसार कथाओं के वर्गीकरण करने का प्रयास किया है / साधारण जैन कथाओं को निम्नलिखित चार भागों में विभक्त किया जा सकता है 1. धर्म संबंधी कथाएं, 2. अर्थ संबंधी कथाएं, 3. काम संबंधी कथाएं, 4. मोक्ष संबंधी कथाएं / इस वर्गीकरण में जो काम और अर्थ संबंधी कथाओं का उल्लेख किया गया है उनमें लक्ष्य मोक्ष भावना प्रधान है / जैन कथाओं में विरक्ति, त्याग, तपस्या आदि धार्मिक कृत्यों को प्रमुखता दी गई है क्योंकि जैन कथाओं का लक्ष्य आध्यात्मिक विकास के साधनों और जैन धर्म प्रतिपादित आधार पर प्रचार करना है। पात्रों पर आधारित इस प्रकार हो सकता है-- 1. राजा-रानी संबंधी कथाएं, 5 2. राजकुमार-राजकुमारी संबंधी कथाएं, 3. आभिजात्य वर्ग की कथाएं, 4. पशु-पक्षी संबंधी कथाएं, 7. आख्यान मणिकोश यह 127 उपदेशप्रद कथाओं का संग्रह है, मूल कृति में प्राकृत की 52 गाथाएं हैं। मंगलाचरण आदि की दो गाथाओं को छोड़कर 50 गाथाओं में 127 कथाएं हैं। रचयिता आचार्य देवेन्द्रगणि हैं। रचना काल वि. सं. 1129 है। 8. कया महोदधि छोटी-बड़ी कुल मिलाकर 150 कथाएं हैं। इसे कर्पूर कथा महोदधि भी कहते हैं। रचयिता सोमचन्द्र गणि हैं और रचना काल वि. सं. 1504 है। 9. कथाकोष (भरतेश्वर बाहुबलि वृत्ति) मूल में 13 गाथाओं में प्राकृत भाषा की रचना है इसमें 100 धर्मात्मा गिनाये हैं जिनमें 53 पुरुष (पहला भरत और अंतिम मेघकुमार) और 47 स्त्रियां (पहली सुलसा और अंतिम रेणा) हैं। इसमें गद्य-पद्य मिश्रित कथायें दी गई हैं। यत्र-तत्र प्राकृत के भी उदाहरण हैं / टीका में सब कथाएं ही हैं इसलिये इसे कथाकोश भी कहा जाता है। इसके रचयिता शुभ शीलमणि हैं। रचना वि. सं. 1509 में हुई है। 10. कथाकोष इसे वृत्त कथाकोश भी कहते हैं इसमें व्रतों संबंधी कथाओं का संग्रह है। इसके रचयिता भट्टारक सकलकीर्ति हैं / ___ इन कथाकोशों के अतिरिक्त और कई आचार्यों ने कथा कोषों की रचना की है जिनमें पूर्व प्रचलित कथाओं के अतिरिक्त समकालीन विभिन्न कथाओं का संग्रह किया गया है। इसके अतिरिक्त प्रबंध पंचशती, दृष्टान्तशतकम् भी दृष्टव्य कथा ग्रन्थ है।धन्य कुमार चरित्रम्, जयानन्द केवली चरित्रम्, विक्रम चरित्रम्, समराइच्च कहा, सिरिसिरिवाल कहा, जम्बू चरित्र इत्यादि एक ही पात्र लेकर बहुत ही रोचक एवं सुन्दर वर्णन करके रचयिताओं ने पाठकों एवं श्रोताओं के मनोमंदिर में प्रवेश पाया है। यह कथाओं के लेखन की परम्परा 14 वी. सदी तक बराबर चलती रही। भाषाओं में प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, देशी आदि हैं / पूर्वोक्त कथाकोष प्रायः दुर्व्यसन त्याग आदि उपदेश प्रधान है। इनके अतिरिक्त ऐतिहासिक, नीति संबंधी विविध प्रकार की कथाओं के संग्रह हैं। यदि विधिवत् ज्ञान भण्डारों के ग्रन्थों की सूची तैयार की जाये तो और दूसरे अनेक ग्रन्थों का पता लग सकता है। जैन कथाओं का वर्गीकरण ऊपर दिये कुछ एक कथाकोशों के संक्षिप्त इतिहास से यह स्पष्ट है कि जैन कथाओं का एक विशाल मंदिर है जिसे निश्चित रूपों में विभक्त करना सरल नहीं है फिर भी सिद्धांतों ने पात्रों और उद्देश्यों प्रकारान्तर से विषयानुसार जैन कथाओं का इस प्रकार भी वर्गीकरण हो सकता है१. व्रत 13. नीति 2. त्याग 14. परिषहजय 3. दान 15. व्यवसाय - 4. सप्त व्यसन त्याग 16. बुद्धि परीक्षण 5. बारह भावना 17. मात्रा आदि संबंधी 6. रत्नत्रय 18. धार्मिक 7. देशधर्म 19. एतिहासिक 8. मंत्र 20. सामाजिक 9. स्तोत्र 21. उपदेशात्मक 10. त्यौहार 22. मनोरंजनात्मक 11. चमत्कार 23. काल्पनिक 12. शास्त्रार्थ 24. प्रकीर्णक किन्तु इस वर्गीकरण को पूर्ण नहीं कहा जा सकता है, यह तो रूपरेखा मात्र है। ऊपर जैन कथा साहित्य के बारे में जो विचार अंकित किये गये हैं वे संकेत मात्र हैं और संकेत को भी संक्षिप्त करें तो कहेंगे कि "जैन कथाओं में जैन संस्कृति और सभ्यता विविध रूपों में मुखरित हुई है।" इन आख्यानों में मानव-जीवन के श्वेत और श्याम दोनों रूपों का दिग्दर्शन कराके आख्यान की परिसमाप्ति पर श्वेत रूप को ही प्रधानता देकर आदर्शवाद को स्थापित किया है। जैनेतर विद्वानों ने लोक भाषाओं को गौण मानकर संस्कृत भाषा को प्रधानता दी वहीं जैन विद्वानों ने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं अन्य प्रान्तीय भाषा से कथा साहित्य का भण्डार परिपूर्ण किया है। इस प्रकार जैन कथाएं जैन संस्कृति का एक सुहावना गुलदस्ता उपस्थित करती हैं। बी.नि.सं. 2503 177 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org