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और अन्तिम भविसयत्त का संग्रह में बारह कथासंकलन दृष्टियों का करती है।
पात स्वयंभू से हो
की कथा का प्रणयन आचार्य सुमतिसूरि ने किया है। कथा अत्यन्त से तो प्राप्त थी। इसमें प्रयुक्त कथाओं के सूत्र भारतीय पुराणों से रसप्रद है।
मिलते-जुलते हैं। अपभ्रंश के प्रबन्धकाव्य को कथा काल कहना अधिक महेश्वसूरि ने ज्ञानपंचमी कथा में श्रुतपंचमीव्रत का माहात्म्य बताने उपयुक्त है क्योंकि इसमें कथा की मुख्यता रहती है चाहे कथा पौराणिक के लिए रस कथाओं का सृजन किया है। इन कथाओं में प्रथम जयसेन हो या काल्पनिक। जैन अपभ्रंश.की प्रायः समस्त प्रबन्धात्मक कथाकहा और अन्तिम भविसयत्त कहा महत्त्वपूर्ण है। नर्मदा सुन्दरीर के कृतियाँ पद्यबद्ध हैं और प्राय: सबके चरित नायक या तो पौराणिक रचयिता महेन्द्रसूरि हैं। 'प्राकृत कथा संग्रह' में बारह कथाओं का सुंदर हैं या जैनधर्म के निष्ठापूर्ण अनुयायी। भाषा, छंद, कवित्व, सभी संकलन हुआ है। लेखक का नाम अज्ञात है। सिरिवालकहा का संकलन दृष्टियों से कथा कृतियाँ अपभ्रंश साहित्य का उत्कृष्ट और महनीय रत्लशेखर सूरि ने किया है। संकलन समय सं. १४२८ है। आधुनिक रूप प्रदर्शित करती हैं। उपन्यास के सभी गुण प्रस्तुत कथानक में विद्यमान हैं।
अप्रभंश कथा साहित्य का सूत्रपात स्वयंभू से होता है उनका जिनहर्षसूरि ने विक्रम संवत् १४८७ में 'रयणसेहर निवकहा' 'पउमचरिउ' रामकथा का जैनरूप दर्शाता है। यह संस्कृत के 'पद्मपुराण' अर्थात् रलशेखर नृपति कथा का प्रणयन किया। जायसी के 'पद्मावत' (रविषेणकृत) और प्राकृत के विमलसूरिकृत 'पउमचरिउ' से उत्प्रेरित की कथा का मूल प्रस्तुत कथा है। डॉ. नेमीचन्द्र जैन शास्त्री इस कथा
है। स्वयंभू ने इसमें अपनी मौलिक घटनाओं को भी निबद्ध किया को 'पद्मावत' का पूर्वरूप स्वीकारते हैं।
महिवाल कथा के रचयिता वीरदेव गणि हैं। इस ग्रंथ की प्रशस्ति या पुष्पदंत प्रणीत 'तिसट्ठि महापुरिसगुणालंकारु' अर्थात् त्रिषष्टि से अवगत होता है कि देवभद्रसूरि चन्द्रगुच्छ में हुए थे। इनके शिष्य शलाका पुरुष गुणालंकार 'महापुराण' ही संज्ञा से विख्यात है। आदि सिद्धसेनसरि और सिद्धसेनसरि के शिष्य मनिचन्द्रसरि थे। वीरदेवगणि पुराण और उत्तरपुराण इन दो खण्डों में त्रेसठ शलाका पुरुषों के मुनिचन्द्र के शिष्य थे।" विण्टरनित्स ने एक संस्कृत 'महिपालचरित' चरित शब्दित हैं। इसका श्लोक परिमाण बीस हजार है। पुष्पदंत की का भी उल्लेख किया है जिसके रचयिता चरित्र सुन्दर बतलाये हैं।
दूसरी कृति ‘णायकुमारचरिठ' में नौ सन्धियाँ हैं। 'जसरहचरिउ' पुष्पदंत उक्त प्रमुख कथा रचनाओं के अतिरिक्त संघ तिलक सरि द्वारा की चार संधियों की रचना है जो मुनि यशोधर की जीवन कथा को विरचित आरामसोहा कथा, पंडिअघणवाल कहा, पुण्यचूल कहा,
प्रस्तुत करती है। आरोग्यदुजकहा, रोहगुत्तकहा, वज्जकण्णनिवकहा, सुहजकहा और
तेइसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ के चरित्र को पद्मकीर्ति ने अपनीकृति मल्लवादी कहा, भद्दबाहुकहा, पादलिप्ताचार्य कहा, सिद्धसेन दिवाकर
'पासचरिउ' में उनके पूर्वभवों (जन्मों) की कथा के साथ चित्रित किया कहा, नागयत्र कहा, बाह्याभ्यन्तर कामिनी कथा, मेतार्य मुनिकथा,
है। धवल की विशाल अपभ्रंशकृति 'रिट्ठणेमिचरिउ' अर्थात् द्रवदंत कथा, पद्मशेखर कथा, संग्रामशूर कथा, चन्द्रलेखा कथा एवं
'हरिवंशपुराण' में एक सो बाइस संधियाँ है। नरसुन्दर कथा आदि बीस कथाएँ उपलब्ध हैं। देवचन्द्रसूरिका
SE अपभ्रंश के मध्यकालीन अर्थात् दसवीं शती के धनपाल विरचित कालिकाचार्य कथानक एवं अज्ञातनामक कवि की मलया सुन्दरी कथा
कथाकाव्य ‘भविसयत्तकहा' आध्यात्मिक चरितकाव्य है। डॉ. आदित्य विस्तृत कथाएँ हैं। प्राकृत कथा साहित्य में कुछ ऐसी कथा कृतियाँ
प्रचंडिया 'दीति' इस कथा काव्य में धार्मिक बोझिलता न मानते हुए उपलब्ध होती हैं जिनका लक्ष्य कथा को मनोरंजक रूप में प्रस्तुत
लैकिक जीवन के एक नहीं अनेक चित्र गुम्फित होना स्वीकारते हैं। करना न होकर जैन मुनियों द्वारा पाठकों को उपदेश प्रदान करना रहा
इस कृति को 'सुयपंचमीकहा' अर्थात् श्रुतपंचमी कथा भी कहते हैं। है। इस प्रकार की उपदेशप्रद कथाओं में धर्मदास गणि की उपदेशमाला,
इसमें ज्ञानपंचमी के फल-वर्णन स्वरूप भविसयत्त की कथा बाइस जयसिंह सूरि की धर्मोपदेशमाला, जयकीर्ति की शीलोपदेशमाला,
संधियों में है। कथा का मूलस्वर व्रतरूप होते हुए भी जिनेन्द्रभक्ति से विजयसिंहसूरि की मुक्त सुन्दरी, मलधारी हेमचन्द्रसूरि की उपदेशमाला,
अनुप्राणित है।५२ साहड की विवेक मञ्जरी, मुनिसुन्दर सूरि का उपदेशरत्नाकर, शुभवर्धन
वीर कवि की अपभ्रंश कृति “जंबूसामिचरिउ' में जैनधर्म के गणि की वर्धमान देशना एवं सोमविपल की दशद्दष्टान्त गीता आदि
अंतिम केवली जंबूस्वामी का चरित ग्यारह सन्धियों में कहा गया है। रचनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। ५ उपदेश कथाओं में उपदेश की प्रधानता है।
इसका रचनाकाल विक्रम संवत् १०७६ है। वीर कवि की इस कृति अन्य विषय गौण हैं।
में ऐतिहासिक महापुरुष जंबूस्वामी के पूर्वभवों तथा उनके विचारों और
युद्धों का वर्णन अभिव्यज्जित है। इसमें समाविष्ट अन्तर्कथाएँ अपभ्रंश जैन कथा साहित्य
मुख्यकथावस्तु के विकास में सहायक बन पड़ी है।३।। अपभ्रंश कथाकाव्य के वस्तुतत्त्व के विकास और अलंकरण पंचपरमेष्ठि नमस्कार महामंत्र के महत्त्व को दर्शाया है विक्रम
संवत ११०० के प्रणेता नयनंदी ने अपनी बारह संधियों वाली रचना उपलब्ध हैं। अपभ्रंश कथा-काव्य के निर्माता एक विशेष युग और 'मदंसणचरिउ' में। सुदर्शन का चरित शीलमाहात्म्य के लिए जैनजगत दृष्टि से प्रभावित थे। कथा कहकर कुतूहल जगाना या मात्र मनोविनोद में विख्यात है।५४ ग्यारहवीं शती के दिगम्बर मुनि कनकामर की कृति करना इनका लक्ष्य नहीं था। वे ऐसे कथा साहित्य की रचना करना 'करकण्डचरिउ' दस संधियों की रचना है। जिसमें करकंडु की मुख्य चाहते थे, जिससे काव्यकला के विधान और उद्देश्य की पूर्ति के साथ कथा के साथ साथ नौ अवांतर कथाएँ हैं जो जैनधर्म के सदाचारमय नैतिकता और धार्मिक उद्देश्य भी प्रतिफलित हो जाएं। कोरे साहित्यकारों जीवन को तथा राजा को नीति की शिक्षा देने के लिए वर्णित हैं। या धर्मवादियों की अपेक्षा इनका दृष्टिकोण कुछ उदार और कथा के प्रसार और वर्णन में व्यापकता है। इस कृति की कथा में लोककल्याणकारी था। कथा साहित्य की यह विरासत इन्हें परम्परा लोक कथाओं की झलक द्रष्टव्य है।५
व्य
सभी कथा काव्यों में समानरूप स
मसणचरित' में। सुदर्शन का चरित शाबर मुनि कनकामर की कृति
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श्रीमद्बयंतसेनसरिअभिनंदन ग्रंथावाचना Jain Education Interational
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विषय विलासी जीव को, नहीं धर्म का राग anelibrary.org
जयन्तसेन पतंग को, दीपक से अनुराग ॥