________________ अनेक जैनों ने वाग्भटालङ्कार की टीका की / वाग्भटालङ्कार के अन्य जैन-टीकाकार हैं-जिनसिंहदेवगणि की टीका चौखम्बा विद्याभवन से प्रकाशित वर्धनसूरि, क्षेमहंसगणि, ज्ञानप्रमोदगणि, वादिराज, (1957 ई.) हुई है। इन्होंने मुग्धजनों के प्रबोध और राजहंसोपाध्याय, समयसुन्दर आदि / अपनी स्मृति की वृद्धि के लिए टीका की रचना की आजड ने सरस्वतीकण्ठाभरण तथा जिनप्रभ, शिववाग्भटकवीन्द्ररचितालंकृतिसत्राणि किमपि विवणोमि / चन्द्र, विनय रत्न, विद्यासागर आदि ने धर्मदास-कृत मुग्धजनबोधहेतोः स्वस्य स्मृतिजननवृद्ध्यै च // विदग्धमुखमण्डन की टीका की। 28. काव्यालङ्कार की टीका के प्रारम्भ में द्वितीय श्लोक / 29. अलङ्कारमहोदधि की प्रस्तावना, प. 19 तथा कृष्णमाचार्य-कृत हिस्ट्री ऑफ क्लै सिकल संस्कृत लिटरेचर, पृ. 762-63 / 30. अलङ्कारमहोदधि की प्रस्तावना / 255 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org