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जैन- टीकाकार
अनेक जैन आचार्यों ने काव्यशास्त्र के उत्कृष्ट ग्रन्थों पर टीकाओं की रचना की है ।
वादसिंह ने दण्डी के काव्यादर्श की टीका की 122 रुद्रट के काव्यालङ्कार के कई जैन टीकाकार हुए हैं । नमिसाधु काव्यालङ्कार के प्रसिद्ध टीकाकार हैं । इनके शीलभद्र थे । इन्होंने अपनी टीका की रचना गुरू 1069 ई. में की -
एवं रुद्रटकाव्यालङ्कतिटिप्पणकविरचनात् पुण्यम् । यदवापि मया तस्मान्मनः परोपकृतिरति भूयात् ॥ थारापद्रपुरीय गच्छतिलकः पाण्डित्य सीमाभवत्सूरिभूरिगुणकमन्दिरमिह श्रीशालिभद्राभिधः । तत्पादाम्बुजषट्पदेन नमिना सङ्क्षेपसम्प्रेक्षिणः ghat मुग्धधियोऽधिकृत्य रचितं सट्टिप्पणं लहवदः ॥ पञ्चविंशतिसंयुक्तैरेकादशसमाशतैः ।
विक्रमात् समतिक्रान्तः प्रावृषीदं समर्थितम् ॥ 23
25. गुणानपेक्षिगी यस्मिन्नर्थालङ्कारतत्परा ।
21.,
22. अलङ्कारमहोदधि की प्रस्तावना ।
23. काव्यालंकार की नमिसाधु- कृत टीका के अन्तिम श्लोक |
24. काणे, संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास ( मोतीलाल सं., 1966 ई.), पृ. 197-98 और अलङ्कारमहोदधि
की प्रस्तावना |
काव्यालङ्कार के अन्य जैन - टीकाकार आशाधर हैं। इन्होंने अपने पिता का नाम सल्लक्षण और पुत्र का नाम छाड बतलाया है । इन्होंने टीका की रचना 1239-43 ई. में की। इनकी अन्य रचनाएँ हैं - अमरकोश की टीका, वाग्मट कृत अष्टाङ्गहृदय की टीका, त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र, रत्नत्रयविधानशास्त्र आदि 124
काव्यप्रकाश की सबसे प्राचीन टीका माणिक्यचन्द्रकृत सङ्केत है। माणिवयचन्द्र सागरेन्दु के शिष्य थे । इन्होंने टीका की रचना 1159 ई. में को 25 माणिक्यचन्द्र गुर्जर देश के निवासी थे । इनकी टीका में किसी टीका या टीकाकार के नाम का उल्लेख नहीं मिलता । अभिधावृत्तिमातृकाकार मुकुल और सरस्वतीकण्ठाभरणकार भोजराज का उल्लेख मिलता है 1 26
प्रौढापि जायते बुद्धिः सङ्केतः सोऽयमद्भुतः ॥1॥
मदमदन तुषारक्षेपपूषाबिभूषा जिनवदनसरोजावासिवागीश्वरीया ।
26. वही, पृ. 21।
27. अलङ्कारमहोदधि की प्रस्तावना ।
गुणरत्नगणि ने काव्यप्रकाश की सारदीपिका नामक टीका की रचना की तथा भानुचन्द्र सिद्धचन्द्र ने काव्यप्रकाशविवृति का प्रणयन किया |22
द्य मुखमरिवलतर्क ग्रन्थपङ्क रुहाणां तदनु समजनि श्रीसागरेन्दुर्मुनीन्द्रः ॥10॥
माणिक्यचन्द्राचार्येण तदङ्घ्रिकमलालिना ।
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काव्यप्रकाशसङ्क ेतः स्वान्योपकृतये कृतः || lin
रसवक्त्रग्रहाधीशवत्सरे ( संवत् 1216) मासि माधवे ।
काव्ये काव्यप्रकाशस्य सङ्कतोऽयं समर्थितः ॥12॥
काव्यप्रकाश (झलकीकर की टीका) की प्रस्तावना के पृ. 21-22 पर सङ्केत के श्लोक उद्धृत ।
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