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જૈન આગમધર ઔર પ્રાકૃત વાડ્મય
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इस प्रकीर्णकमें ऐसी बहुत-सी बातें हैं जो श्वेताम्बरों को स्वप्न में भी मान्य नहीं हैं और अनुभवसे देखा जाय तो उसमें आगमोंके नष्ट होनेका जो क्रम दिया है वह संगत भी नहीं है.
अंगविज्जापइण्णय एक फलादेशका ९००० श्लोक परिमित महत्वका ग्रंथ है. इसमें ग्रहनक्षत्रादि या रेखादि लक्षणोंके आधार पर फलादेशका विचार नहीं किया गया है, किन्तु मानवकी अनेकविध चेष्टाओं एवं क्रियाओंके आधार पर फलादेश दिया गया है. एक तरह माना जाय तो मानसशास्त्र एवं अंगशास्त्रको लक्ष्य में रखकर इस ग्रंथकी रचना की गई है. भारतीय वाङ्मय में इस विषयका ऐसा एवं इतना महाकाय ग्रंथ दूसरा कोई भी उपलब्ध नहीं हुआ है.
आगमोंकी व्याख्या
ऊपर जिन जैन मूल आगमसूत्रोंका संक्षेपमें परिचय दिया गया है उनके ऊपर प्राकृत भाषामें अनेक प्रकारकी व्याख्याएँ लिखी गई हैं. इनके नाम क्रमशः -- निर्युक्ति, संग्रहणी, भाष्य, महाभाष्य; ये गाथाबद्ध पद्यबद्ध व्याख्याग्रंथ हैं. और चूर्णि, विशेषचूर्णि एवं प्राचीन वृत्तियाँ गद्यबद्ध व्याख्याग्रंथ हैं.
नियुक्तियाँ -- स्थविर आर्य भद्रबाहु स्वामीने दस आगमों पर नियुक्तियाँ रची हैं, जिनके नाम इन्होंने आवश्यक निर्युक्तिमें इस प्रकार लिखे हैं
आवस्यस्ल १ दसकालियरल २ तह उत्तरज्झ ३ मायारे ४ । सूयगडे णिज्जुन्ति ५ वोच्छामि तहा दसाणं च ६ ॥ कप्पस्स य णिज्जुप्ति, ववहारस्लेव परमनिउणस्स ८ । सूरियपण्णत्ती ९ वोच्छं इतिभासियाणं ब १० ॥ इन गाथाओं में सूचित किया है तदनुसार इन्होंने दस आगमोंकी नियुक्तियाँ रची थीं. आगमों की अस्तव्यस्त दशा, अनुयोगकी पृथक्ता आदि कारणोंसे इन नियुक्तियोंका मूल स्वरूप कायम न रहकर आज इनमें काफी परिवर्तन और हानि-वृद्धि हो चुके हैं. इन परिवर्तित एवं परिवर्द्धित नियुक्तियों का मौलिक परिमाण क्या था ? यह समझना आज कठिन है. खास करके जिन पर भाष्यमहाभाष्य रचे गये उनका मिश्रण तो ऐसा हो गया है कि स्वयं आचार्य श्री मलयगिरिको बृहत् - कल्पकी वृत्ति (पत्र १) में यह कहना पड़ा कि - - सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्तिर्भाव्यं चैको ग्रंथो जातः ' और उन्होंने अपनी वृत्ति में नियुक्ति-भाष्यको कहीं भी पृथक् करनेका प्रयत्न नहीं किया है.
सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषितसूत्रकी नियुक्तियाँ उपलब्ध नहीं हैं. उत्तराध्यन, आचारांग, सूत्रकृतांग, दशा इन आगमों की नियुक्तियोंका परिमाण स्पष्टरूपसे मालूम हो जाता है. आवश्यक, दशकालिक आदिकी नियुक्तियों का परिमाण भाष्यगाथाओंका मिश्रण हो जानेसे निश्चित करना कठिन जरूर है, तथापि परिश्रम करनेसे इसका निश्चय हो सकता है किन्तु कल्प व व्यवहारसूत्रकी
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