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જૈન આચમધર ઓર પ્રાકૃત વાલ્મય
[31 नागार्जुनीय वाचनाकी अपेक्षा न्यूनाधिक्य या व्याख्याभेद क्या था, इसका आज कोई पता नहीं लगता. बहुत संभव है, ये वाचनाभेद चूर्णि-वृत्ति आदि व्याख्याओंके निर्माणके बादमें सिर्फ पाठभेदके रूपमें परिणत हो गये हो. यही कारण है कि चूर्णिकार और वृत्तिकारों की व्यवस्थामें पाठोंका कभी-कभी बहुत अन्तर दिखाई देता है.
(१) दशवैकालिकसूत्रकी अनामकर्तृक मुद्रितचूर्णिके पृष्ठ २०४ में “ नागज्जुणिया तु एवं पढंति-एवं तु गुगप्पेही अगुणाऽणविवजए " इस प्रकार एक ही नागार्जुनीय वाचनाका उल्लेख पाया गया है. यह उल्लेख पाठभेदमूलक नहीं अपितु व्याख्याभेदमूलक है. माथुरी वाचता वाले "अगुणाण विवज्जए-अगुणानां विवर्जकः" ऐसी सीधी व्याख्या करते हैं, जबकि नागार्जुनीय वाचना वाले " अगुगाऽगविवज्जए-अगुणरिणं अकुव्वंतो" अर्थात् 'अगुणरूप ऋण नहीं करते' ऐसी व्याख्या करते हैं. इस चूर्णिमें नागार्जुनीय नामका यह एक ही उल्लेख देखनेमें आया है. इसी दशवकालिकसूत्रकी स्थविर अगस्त्यसिंहकृत एक अन्य प्राचीन चूर्णि पाई गई है जो अभी प्राकृत टेक्स्ट-सोसायटी की ओर से छप रही है. इसमें (पृ. १३६) इस स्थान पर उपर्युक्त वाचनाभेदका उल्लेख किया है किन्तु नागार्जुनीय नामका उल्लेख नहीं है. इससे भी यही प्रतीत होता है कि नागार्जुनीय पाठभेदादि केवल पाठान्तर व मतान्तरके रूप में ही रह गये हैं. प्राचीन वृत्तिकार आचार्य हरिभद्र भी अपनी वृत्तिमें कहीं पर भी नागार्जुनीय वाचनाका नामोल्लेख करते नहीं हैं.
(२) आचारांगसूत्रको चूर्णिमें नार्गार्जुनीयवाचनाभेदका उल्लेख पंद्रह जगह पाया जाता है१. भदन्त नागार्जुनीयास्तु पढंति पृ० ६२ वृत्तिपत्र ११८ २. णागज्जुणिया पढंति ३. भदंतणागजुणिया तु पढंति
११३ ४. भदंतणागज्जुणिया
१२०
१६६ पृ० २ ५. भदंतणागज्जुणिया पढंति __ पृ० १३९ वृत्तिपत्र १८३ पृ० २ ६. एत्थ सक्खी भदन्तनागार्जुनाः
१९८ पृ० २ ७. नागार्जुनीयास्तु
___, २०१ पृ० १. ८. णागज्जुणीया
, २३९ पृ० १ ९. भदन्त णागज्जुणा तु
, २४५ पृ० १ १०. णागज्जुणिया उ
, २१९ ११. णागज्जुणा
, २३२ वृत्तिपत्र २५३ पृ० २. १२. णागज्जुणा तु
, २३७ , २५६ पृ० १ १३. णागजुणा
२८७
२०७
२१९
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