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________________ ४. श्रीपाल कथा -(रइधू) ५. सिद्धचक्र कथा -(नरसेन) ६. सप्तव्यसन वर्जन कथा-(पं० माणिक्यचन्द्र) ७. भविष्यदत्त कथा -(विबुध श्रीधर) ८. सुकुमाल चरित्र -(श्रीधर) ६. सनत्कुमार चरित्र -(हरिभद्र सूरि) १०. श्रीपाल चरित्र -(दामोदर) ११. हरिषेण चरित्र । इत्यादि अपभ्रश का कथा-साहित्य प्राकृत की ही भाँति प्रचुर तथा समृद्ध है। अनेक छोटी-छोटी कथाएं व्रत-सम्बन्धी आख्यानों को लेकर या धार्मिक प्रभाव बनाने के लिए लोकाख्यानों के आधार पर रची गयी हैं। अकेली रविव्रत-कथा के संबंध में अलग-अलग विद्वानों की लगभग एक दर्जन रचनाएं मिलती हैं । केवल भट्टारक गुणभद्र रचित सत्रह कथाएं उपलब्ध हैं। इसी प्रकार पं० साधारण की आठ कथाएं तथा मनि बालचन्द्र की तीन एवं मुनि विनयचन्द्र की तीन कथाएं मिलती हैं। अपभ्रंश कथा कोष के अन्तर्गत कई अज्ञात रचनाएं देखने को मिलती श्रीचन्द का कथा-कोष प्रसिद्ध ही है। इसके अतिरिक्त आगरा-स्थित दि० जैन-मन्दिर, धूलियागंज में, जयपुर तथा दिल्ली में भी अज्ञातनामा अपभ्रश कथा-कोष मिलते हैं। यदि इन सबकी छानबीन की जाए तो लगभग एक सौ से भी अधिक स्वतन्त्र कथात्मक रचनाएं उपलब्ध होती हैं। इनके अतिरिक्त आचार्य नेमिचन्द्र सूरि विरचित 'आख्यानमणिकोष' में वर्णित तथा महेश्वर सूरि कृत 'संगममञ्जरी' की टीका में एवं मानसूरि कृत 'मनोरमा चरित्र' में भी अपभ्रश की प्राकृत-अपभ्रश मिश्रित कई कथाएं हैं। अभी तक इस समग्र कथा साहित्य का सर्वेक्षण तथा अनुशीलन नहीं किया गया है। भारतीय संस्कृति की अनुसन्धानात्मक दिशा में प्रवृत्त विद्वानों को इन कथाओं का अध्ययन भी करना चाहिए, जिससे मध्यकालीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के कतिपय नवीन तथ्य भी प्रकाशित हो सकेंगे। अब हम अपभ्रश के उपरोक्त कथा-काव्यों के माध्यम से साहित्य के विभिन्न सोपान-वस्तु-वर्णन, रस-सिद्धि, अंलकार-योजना. छन्द-योजना, प्रकृति-चित्रण आदि का वर्णन करते हुए साहित्य में वर्णित समाज और संस्कृति की दृष्टि से इसका मूल्यांकन करेंगे। अपभ्रंश कथा-काव्यों का वस्तु-वर्णन-अपभ्रंश के कथा-काव्यों में वस्तु-वर्णन कई रूपों में मिलता है। कहीं परम्परायुक्त वस्तुपरिगणन, वत्तात्मक शैली को अपनाया है, कहीं लोकप्रचलित शैली में भी जन-जीवन का स्वाभाविक चित्रण कर लोक-प्रवृत्ति का परिचय दिया है। परम्परागत बर्णनों में नगर-वर्णन, नखशिख-वर्णन, वन-वर्णन, प्रकृति-वर्णन दृष्टिगोचर होते हैं । कहीं-कहीं संश्लिष्ट योजना द्वारा सजीवता सहज रूप में प्रतिबिम्बित है। कई मार्मिक स्थलों की यथोचित संयोजना कथा-काव्य में रसात्मकता से ओत-प्रोत है। घटना-वर्णनों के बीच अनेक मार्मिक स्थलों की नियोजना स्वाभाविक रूप से हुई है। कुछ कथा-काव्यों के उदाहरण दृष्टव्य हैंभविसयत्तकहा में युद्ध-वर्णन कवि धनपाल ने भविसयत्तकहा में युद्ध-वर्णन अत्यन्त विस्तार से किया है । घनघोर युद्ध का सजीव वर्णन नीचे की पंक्तियों में अत्यन्त सजल है 'हरिख रखुरणखोणी खणंतु गयपायपहारि घरदरमलंतु। हणु रारि रारि करयलु करालु सण्णद्धबद्ध भडथडवमालु । तं णिइवि सघण अहिमुहु चलंतु धाइउ कुरनसाहणु पडिखलंतु। (भ. क. १४, १३) विलासवती कथा में संग्राम की स्थिति में दोनों (हंस और हंसी) विरह के वेग से करुण स्वर में कूकते हैं। उनका खाना-पीना छूट जाता है और चिन्ता से विकल होकर मृत्यु का आलिंगन करने के लिए तत्पर हो जाते हैं 'ता गरुय विरह वेयण वसेण, कूवति दोवि करुणइ सरेण । आहारन न इच्छाहिं मरणहं बछाहि खणु अच्छाहिं चितावियई। (११, १५) जिनदत्ताख्यान में प्रकृति-वर्णन के अन्तर्गत रात्रि के वर्णन का एक दृश्य द्रष्टव्य है "णं णिसा णिसायरोहिं फुल्लसोह णं रईहिं। गेहि गेहि दिज्जयंति दीव जे तमोह हंति । ताव चंदिया समेउ चंद उग्गउ सतेउ । लोयणाण ते असोहु भंजि घल्लिउ तमोहु।" आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन प्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210562
Book TitleJain Apbhramsa katha Sahitya ka Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Kudal
PublisherZ_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf
Publication Year1987
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Story
File Size541 KB
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