________________ 237 जम्बूद्वीप ओर आधुनिक भौगोलिक मान्यताओं का तुलनात्मक विवेचन (आ) किसी एक ही केन्द्रीय मलस्रोत से निकलकर सात मानव-समूहों ने सात विभिन्न भागों को व्याप्त स्वतन्त्र रूप से पृथक्-पृथक् मानव सभ्यता का विकास किया। यह सिद्धान्त भी आधुनिक नैज्ञानिक दृष्टिकोण से सम्मत है जिसमें कहा गया है कि विश्व की प्राथमिक जातियों ने पृथिवी के विभिन्न वातावरणों वाले सात प्रदेशों को व्याप्त कर तत्तत्प्रदेशों के वातावरण के प्रभाव में अपनी शारीरिक विशिष्ट आकृतियों का विकास किया। (इ) पश्चात् पृथ्वी के इन सात भागों में से (पुराणों के अनुसार जम्बूद्वीप में ) नौ मानव समूहों ने जो नौ प्रदेशों को व्याप्त किया उनमें भारतवर्ष भी एक है।' भारतवर्ष भारत वर्ष से प्रायः इण्डिया उपमहाद्वीप जाना जाता है। किन्तु प्राचीन विदेशी साहित्य में समग्र इण्डिया उपमहाद्वीप के लिए कोई एक नाम नहीं है। वैदिक आर्यों ने पंजाब प्रदेश को 'सप्तसिन्धव' नाम दिया। बोधायन और मनु के समय में आर्यों के कर्म क्षेत्र को 'आर्यावर्त' नाम दिया गया। डेरियस् ( Darius ) तथा हेरोडोटस (Herodotus) ने सिन्धुघाटी तथा गङ्गा के उत्तरी प्रदेश को 'इण्ड' 'या इण्डू' (हिन्दू) नाम दिया। कात्यायन ओर मेगास्थनीज ने सूदूर दक्षिण में पांड्य राज्य तक फैले का वर्णन किया है। रामायण तथा महाभारत भी पाण्डय राज तथा बंगाल की खाड़ी तक फैले भारतवर्ष का वर्णन करते हैं। ___ अशोक के समय में भारत की सीमा उत्तर-पश्चिम में हिन्दूकुश तक और दक्षिण-पूर्व मात्रा-जावा तक पहुँच गई थी। कनिङ्गम ने इस समस्त प्रदेश को विशाल भारत (Greater India) नाम दिया और भारत वर्ष के नवद्वीपों से इसकी समानता स्थापित की। इस प्रकार आधुनिक भौगोलिक मान्यताओं के अनुसार जम्बूद्वीप का विस्तार उत्तर में साइबेरिया प्रदेश (आर्कटिक ओशन), दक्षिण मे हिन्दमहासागर और उसके द्वीप समूह, पूर्व में चीन-जापान (प्रशान्त महासागर ) तथा पश्चिम में केस्पियन सागर तक समझना चाहिए। ___ अन्त में, हम प्रसिद्ध भूगोल शास्त्र वेत्ता, सागर विश्व विद्यालय के भूगोल विभाग के भूतपूर्व अध्यक्ष, डा० एस० एम० अली के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना अपना कर्तव्य समझते हैं, जिनके अतिशय खोजपूर्ण ग्रन्थ (The Geography of the Puranas') से हमें इस निबन्ध के लेखन में पर्याप्त सहायता प्राप्त हुई। 1. डॉ० एस० एम० अली Geo. of Puraras Page 9-10 (Introduction). 2. वही Page 190. chapter VIII Bharat varat varsai Physical Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org