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________________ २३६ डा० हरीन्द्र भूषण जैन जम्बूद्वीप का दक्षिणी क्षेत्र जम्बूद्वीप के दक्षिण-प्रदेश का वर्णन मेरु के प्रसंग में किया जा चुका है। तदनुसार मेरु (पामीर्स ) के दक्षिण में निषध, हेमकूट (जैन परम्परा में महाहिमवान् ) तथा हिमवान् पर्वत हैं और इन पर्वतों से विभाजित क्षेत्र के नाम हैं, क्रमशः हिमवर्ष (जैन पर० में हरि) किंपुरुष (जैन पर० में हैमवत और भारतवर्ष ) (जै० परं० में भरत )। यह सभी प्रदेश मेरु (पामीर्स) से लेकर हिन्दमहासागर तक का समझना चाहिए। भारत के दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम में जो क्रमशः हिन्द महासागर एवं प्रशान्त तथा अरबसागर हैं वहीं लवण समुद्र है। जम्बूद्वीप और भारतवर्ष : पौराणिक इतिहास विष्णु पुराण (२.१.) के अनुसार स्वयंभू-मनु के दो पुत्र थे प्रियव्रत और उत्तानपाद । प्रियव्रत ने समस्त पृथ्वी के सात भाग (सप्तद्वीप) करके उन्हें अपने सात पुत्रों में बांट दियाअग्निध्र को जम्बूद्वीप, मेधातिथि को प्लक्ष, वपुष्मत् को शाल्मली, ज्योतिष्मत् को कुश, द्युतिमत् को क्रौञ्च, भव्य को शक और शबल को पुष्कर द्वीप। जम्बूद्वीप के राजा अग्नीध्र के नौ पुत्र थे। उन्होंने जम्बूद्वीप के नौ भाग करके उन्हें अपने नौ पुत्रों में बाँट दिया--हिमवत् का दक्षिणभाग 'हिम' ( भारतवर्ष ) नाभि को दिया। इसी प्रकार हेमकूट किम्पुरुष को, निषध तरिवर्ष को, मेरु के मध्यवाला भाग इलावृत को, इस प्रदेश और नील पर्वत के मध्यवाला भाग रम्य को। इसके उत्तर वाला श्वेत प्रदेश हिरण्यवत् को, शृङ्गवान् पर्वत से घिरा श्वेत का उत्तर प्रदेश कुरु को, मेरु के पूर्व का प्रदेश भद्राश्व को तथा गन्धमादन एवं मेरु के पश्चिम का प्रदेश केतुमाल को दिया। _नाभि के सौ पुत्र थे उनमें सबसे ज्येष्ठ भरत थे। नाभि ने अपने प्रदेश 'हिम' अर्थात् भारतवर्ष को नौ भागों में विभक्त करके अपने पुत्रों में बाँट दिया । मार्कण्डेय पुराण के अनुसार भारत वर्ष के वे नौ भाग इस प्रकार हैं--इन्द्रद्वोप, कसेरुमान्, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान्, नागद्वीप, सौम्य, गन्धर्व, वरुण तथा कुमारिका या कुमारी। जैन परम्परा के अनुसार नाभि और मरुदेवी के पुत्र, प्रथम तीर्थंकर ऋषभ, युग पुरुष थे। उन्होंने विश्व को असि, मसि, कृषि, सेवा, वाणिज्य और शिल्प रूप संस्कृति प्रदान की। उनके एक सौ एक पुत्र थे। इनमें भरत और बाहुबली प्रधान थे। संसार से विरक्त होकर दीक्षा ग्रहण करने से पूर्व ऋषभ ने सम्पूर्ण पृथ्वी का राज्य अपने समस्त पुत्रों को बाँट दिया। बाहुबली को पोदन का राज्य मिला। भरत चक्रवर्ती सम्राट् हुए, जिनके नाम से यह भारत वर्ष प्रसिद्ध हुआ। इस पौराणिक आख्यान से तीन बातें स्पष्टतः प्रतीत होती हैं - (अ) किसी एक मूल स्रोत से विश्व की पुरुष जाति का प्रारम्भ हुआ। यह बात आधुनिक विज्ञान की उस मनोजेनिष्ट थियरी (Monogenist Theory) के अनुसार सही है जो मानती है कि मनुष्य जाति के विभिन्न प्रकार प्राणिशास्त्र की दृष्टि से एक ही वर्ग के हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210512
Book TitleJambudwip aur Adhunik Bhaugolik Manyatao ka Tulnatmaka Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherZ_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf
Publication Year1994
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationArticle & Comparative Study
File Size791 KB
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