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________________ इसके पश्चात् इसका पुत्र उद्धरणदेव अपने पिता की गद्दी पर बैठा । 16 शासन प्राप्ति के बाद यह कुल दो वर्ष ही जीवित रहा। इसके काल के संबंध में विशेष विवरण प्राप्त नहीं है । सन् 1402 ई. के लगभग उद्धरणदेव का पुत्र वीरमदेव गद्दी पर बैठा ।" यह बड़ा पराक्रमी था। इसके काल में मल्लू इकबाल खाँ ने इस पर आक्रमण किया परन्तु वह वीरमदेव को हराने में असफल रहा । इसके दरबार में कुशराज नाम का विश्वासपात्र महामात्य था । यह जैसवाल जैन कुल में उत्पन्न हुआ था, इसके पिता का नाम जैनपाल और माँ का नाम लोणा देवी था । यह राजनीति में बड़ा ही दक्ष और पराक्रमी था । 18 यह सदा जैनेन्द्र की सेवा में रत रहता था । यह अपनी भार्या रल्हो और लक्ष्मणश्री तथा पुत्र कल्याणमल्ल और उसकी भार्या जयत म्हिदे 18. वंशेऽभूज्जैसवाले विमलगुणभूलणः साधुरत्नं, इत्यादि परिवार के कल्याण के लिये उस यंत्र की पूजा करता था । इसकी एक तीसरी भार्या कौशीरा थी । इसने भ. विजय कीर्ति के उपदेश से ग्वालियर में चन्द्रप्रभु का एक विशाल मन्दिर बनवाया था और भारी धूमधाम से उसका प्रतिष्ठोत्सव समारोह आयोजित किया । इस अवसर पर जोनार (सामूहिक भोज) भी आयोजित की गई । चन्द्रप्रभु का यह मन्दिर ही बाद में शेख मोहम्मद गौस का निवास स्थान बना जिसे आजम हुमायूँ ने भ्रष्ट कर दिया था । इस घटना का विस्तृत उल्लेख आगे उपलब्ध है । 16. ईश्वर चूडारत्नं विनिहत करघातवृत्त संहातः । चन्द्र इव दुग्धसिंधोस्तस्मादुद्धरणभूपतिर्जनितः ॥ 17 तत्पुत्रो वीरमेन्द्रः सकलवसुमती पाल चूड़ामणिर्यः । प्रख्यातः सर्वलोके सकलबुधकलानन्दकारी विशेषात् । तस्मिन् भूपालरत्ने निखिलनिधिगृहे गोपदुर्गे प्रसिद्धि, भु' जाने प्राज्यराज्यं विगतरिपुमयं सुप्रजः सेव्यमानः ॥ - यशोधरचरित प्रशस्ति Jain Education International राजा का विश्वासपात्र महामात्य जैन होने के कारण वीरमदेव के शासन काल में जैन धर्मावलंबियों को विकास का अच्छा अवसर मिला । कुशराज ने साधुश्री जैनपालो भवदुदितयास्तत्सुतो दानशीलः । जैनेन्द्रः राघनेसु प्रमुदित हृदयः सेवकः सद्गुरूणां, लोणाख्या सत्यशीलाऽजनि विमलमतिर्जनपालस्य भार्या जातः षट्तनयास्तयोः सकृतिनोः श्रीहंसराजोभवत्, तेषामाद्यतमस्ततस्तदनुजः सौराजनामाऽजनि । रैराजोभवराजकः समजनि प्रख्यातकीर्तिमहासाधुश्री कुशराजकस्तदनु च श्री क्षेमराजो लघुः ||6|| जाताः श्रीकुशराज एव सकलक्ष्मापालचूडामणेः, श्रीमत्तोमर-वीरमस्य विदितो विश्वासपात्रं महान् । मंत्री मंत्रविचक्षणः क्षणमयः क्षीणारिपक्षः क्षणात् । क्षेणीमीक्षणरक्षणमति जैनेन्द्र पूजारतः ॥7॥ ३४४ - यशोधरचरित प्रशस्ति ¿ - यशोधरचरित प्रशस्ति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210470
Book TitleGwalior ke Sanskrutik Vikas me Jain Dham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherZ_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationArticle & Culture
File Size3 MB
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