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________________ वर्षों के कठिन परिश्रम से बनी मतियों के सौन्दर्य को चन्द्रप्रभू के मन्दिर में जहाँ शेख की खानकाह थी उन्हें कुछ ही दिवसों में नष्ट कर दिया गया । क्र र बाबर ने दफना दिया गया; और वहीं उतका मकबरा वना इस कृत्य का अपनी आत्मकथा (बाबरनामा) में बड़े दिया गया । गौरव के साथ उल्लेख किया है। इस प्रकार यदि सच पछा जाये तो इस सारी घटना में जैन ही उसके सर्वा उसके बाद लगभग 200 वर्षों तक ग्वालियर पर धिक कोपभाजन रहे। इस थोड़े काल में उसने दुर्ग पर मुगलों का ही अधिकार रहा। इस कार्यकाल में दुर्ग का स्थित इन मूर्तियों को ध्वस्त करने के अतिरिक्त नगरों प्रयोग केवल बंदी गृह के रूप में ही किया गया मुगल शासकों द्वारा अनेकों ऐसे शहजादे, जागीरदार, बड़े में स्थित मन्दिरों को भी ध्वस्त किया, जहाँ उनको यह संभव न दिखा वहाँ मतियों और वेदियों को ही नष्ट सरदार तथा अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति जिन्हें जनता के समक्ष कर अपनी सन्तुष्टि कर ली। मृत्यु दण्ड देना अहितकर प्रतीत होता था, इस दुर्ग में लाये जाने लगे। यहां उन्हें या तो मन्द जहर दे दिया परन्तु बाबर भी अधिक काल तक इस दुर्ग को जाता था या ऐसी यातनायें दी जाती थीं जिनसे वह उपभोग न कर सका और सन् 1540 में यह दुर्ग पागल होकर स्वयं प्राणान्त कर लेते थे। इस तरह मुगलों के हाथ से निकलकर शेरशाह सूरी के हाथों में विभिन्न क्षेत्रों से लाये गये राज विद्रोही हाथी पोल से आ गया। उन्होंने इसे राजधानी के रूप में प्रयोग चढ़ाकर किले में लाये जाते थे और फिर वे संसार के किया। और यहां से बे शेष राज्य पर शासन करते । दर्शन करने के लिये कभी नहीं लौटते थे। रहे। सन् 1559 ई. में अकबर ने सरी वंश को अकबर की मृत्यु के बाद जब जहांगीर दिल्ली के नष्टकर ग्वालियर को अपने अधिकार में ले लिया। तख्त पर बैठा तब यह दुर्ग उसके अधिकार में आ गया। उसने लिखा है कि तख्त पर बैठने के अवसर पर उसने इस बीच शेख मोहम्मद गौम ग्वालियर में महत्त्व मुगल साम्राज्य के समस्त कैदियों को बन्दीगृह से मुक्त पूर्ण व्यक्ति बने रहे । ग्वालियर दुर्ग पर मुगल राजाओं करने की आज्ञा दी। उस समय ग्वालियर दुर्ग से 7 हजार का अधिकार कराने और हर संकट के समय उन्हें मार्ग कैदी छोड़े गये। उनमें कई लोगों की आय 40 वर्ष के दर्शन व सहायता प्रदान कर अनके राज्य को स्थायी लगभग थी। परन्तु बाद में बादशाह जहांगीर ने भी बनाने में शेख गौस ने प्रमुख भूमिका का निर्वाह किया। इस दुर्ग को बन्दीगृह के रूप में ही प्रयोग किया। इस कारण विभिन्न मुगल शासकों बाबर, हुमायू और अकबर की नजर में वे सदैव सम्मानीय व्यक्ति बने रहे। जहांगीर के ही शासनकाल में एक बार भट्रारक ब्रजग्वालियर दुर्ग पर नियुक्त मुगल अधिकारी भी उनसे भूषण के शिष्य पदमावती पुरवाल वंशज, टापू निवासी अत्याधिक प्रभावित रहे । हिजरी सन् 970 (सोमवार श्री ब्रह्मगुलाल जी मुनि होने के बाद भ्रमण करते हये 10 मई 1563 ई.) को आगरा में शेख मोहम्मद गौस। थे। सन् 1618 ई. में इन्होंने यहां पर "त्रेपन क्रिया" 43. ग्वालियर के तोमर, हरिहर निवास द्विवेदी पृ. 209 । 44. अगरचन्द नाहटा--- मध्य प्रदेश के कवि 'ब्रह्मगुलाल" मध्यभारत सदेश, 31 दिसम्बर 1955 ३५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210470
Book TitleGwalior ke Sanskrutik Vikas me Jain Dham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherZ_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationArticle & Culture
File Size3 MB
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