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________________ यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य चारित्र का अभाव और अनैतिकता है। विश्व में सुख-शान्ति के का पाठ पढ़ाया गया होता, संसार की अधिक से अधिक भलाई लिए चारित्र पर ध्यान देना आवश्यक है। बचपन से ही बच्चों में का पाठ पढ़ाया गया होता तो वैज्ञानिकों ने अणु शक्ति का नैतिकता के गुण भरने चाहिए। रहीम जी ने चारित्र को पानी की प्रयोग विनाशक शस्त्रों के निर्माण के बजाय शान्तिपूर्ण अन्य उपमा देते हुए कहा है निर्माणों में किया होता, फलतः आज विश्व की कितनी तरक्की रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। हो गई होती। जो अरबों-खरबों डॉलर शस्त्रनिर्माण में खर्च हो रहे पानी गए न ऊबरे, मोती मानुस चून।।। हैं उन्हें विश्व के कल्याण के लिए खर्च किया गया होता तो कबीरदास जी ने चारित्र को गुरु की उपमा देते हुए कहा है संसार में अपोषण और गरीबी का नामोनिशान नहीं रहता। करनी करे सो पूत हमारा, कथनी करे सो नाती। संसार रूपी भयंकर जंगल में जहाँ पद-पद पर विषय -- रहणी रहे सो गुरु हमारा, हम रहणी के साथी॥ कषाय की धधकती ज्वालाएँ जल रही हैं, उससे सकुशल बाहर भगवान महावीर ने ज्ञान और चारित्र के विषय में एक निकलने के लिए, मुक्तिप्राप्ति के लिए ज्ञान रूपी नेत्रों के साथ महत्त्वपूर्ण बात कही है। जब भगवान से ज्ञान और क्रिया के ' चारित्र रूपी चरणों को गति देनी होगी। यही मोक्ष का मार्ग हैविषय में पूछा गया तो प्रभु ने कहा - शब्दों को सन्देश नहीं, अब जीवन को सन्देश बनाओ। "विन्नाणे समागमे धम्मसाहुण मिच्छिउं।" जो बोलो सो करो स्वयं भी, जीवन की गरिमा को पाओ।। पानी-पानी कहने से क्या, प्यास बुझी है कभी किसी की। अर्थात् धर्म की पूर्ण उपलब्धि के लिए विज्ञान और चारित्र जो पीता है ठंडा पानी, प्यास मिटी है सदा उसी की। का समन्वय आवश्यक है, क्योंकि बिना ज्ञान के जड़ क्रिया __अत: यदि धर्म की प्यास बुझाना है तो पानी-पानी मत अंधी है और बिना क्रिया का ज्ञान शैतान है। कहते रहिए अपितु धर्म का पवित्र ठण्डा जल पीजिए, उसे आज संसार में जो अणुबम का भय छा रहा है, उसका जीवन में उतारिए, उसे क्रियान्वित कीजिए तभी यहाँ भी सुखकारण क्या है? उसका कारण है विज्ञान का धर्म के साथ शान्ति प्राप्त होगी और भविष्य में-परभव में भी उत्तम गति की समन्वय नहीं होना। यदि वैज्ञानिकों को बचपन से ही नैतिकता प्राप्ति होगी। tarwaridrior60-60-6dridrobodoodr6006-6droM16606606ridrioridroominioriandiranironironidwar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210425
Book TitleKriya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendravijay
PublisherZ_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
Publication Year1999
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ritual
File Size635 KB
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