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________________ । ५९ ] तथापि इसमें पांचों सन्धियाँ खोजी जा सकती हैं। प्रथम का सूतिकर्म करने के लिये आती हैं। उसका स्नात्रोत्सव सर्ग में शिवादेवी के गर्भ में जिनेश्वर के अवतरित होने में इन्द्रद्वारा सम्पन्न होता है। दोक्षा से पूर्व भी वह भगवान् मुखसन्धि है। इसमें कथानक के फलागम का बीज निहित का अभिषेक करता है। पौराणिक शैली के अनुरूप इसमें है तथा उसके प्रति पाठक की उत्सुकता जानत होती है। दो स्वतन्त्र स्तोत्रों का समावेश किया गया है। कतिपय द्वितीय सर्ग में स्वप्नदर्शन से लेकर तृतीय सर्ग में पुत्रजन्म अन्य पद्यों में भी जिनेश्वर का प्रशस्तिगान हुआ है। तक प्रतिमुख सन्धि स्वीकार की जा सकती है, क्योंकि जिनेश्वर के जन्मोत्सव में देवांगनाएँ नृत्य करती हैं तथा मुखसन्धि में जिस कथाबीज का वपन हुआ था, वह यहाँ देवगण पुष्पवृष्टि करते हैं। पौराणिक महाकाव्यों की परिकुछ अलक्ष्य रहकर पुत्रजन्म से लक्ष्य हो जाता है। चतुर्थ पाटी के अनुसार इसमें नारी को जीवन-पथ को बाधा सर्ग से अष्टम सर्ग तक गर्भसन्धि की योजना मानी जा माना गया है। काव्यनायक दीक्षा लेकर केवलज्ञान सकती है। सूतिकर्म, स्नात्रोत्सव तथा जन्मोत्सव में फलागम तथा अन्तत: परमपद प्राप्त करते हैं। उनकी देशना का काव्य के गर्भ में गुप्त रहता है । नर्वे से ग्यारहवें सर्ग तक समावेश भी काव्य में हुआ है। एक ओर नेमिनाथ द्वारा वैवाहिक प्रस्ताव स्वीकार कर इन समूचे पौराणिक तत्त्वों के विद्यमान होने पर भी लेने से मुख्यफल की प्राप्ति में बाधा उपस्थित होती है, नेमिनाथ काव्य को पौराणिक महाकाव्य मानना न्यायोचित किन्तु दूसरी ओर वधूगृह में वध्य पशुओं का करुण क्रन्दन नहीं है। इसमें शास्त्रीय महाकाव्य के लक्षण इतने पुष्ट तथा सुनकर उनके निर्वेदग्रस्त होने तथा दीक्षा ग्रहण करने से प्रचुर हैं कि इसकी यत्किचित पौराणिकता उनके सिन्धु प्रवाह फलप्राप्ति निश्चित हो जाती है। अतः यहाँ विमर्श सन्धि में पूर्णतया मजित हो जाती है। ह्रासकालीन शास्त्रीय का सफल निर्वाह हुआ है। ग्यारहवें सर्ग के अन्त में महाकाव्यकी प्रमुख विशेषता-वर्ण्य विषय तथा अभिव्यंजना केवल ज्ञान तथा बारहवें सर्ग में परम पद प्राप्त करने के शैली में वैषम्य- इसमें भरपुर मात्रा में वर्तमान है । शास्त्रीय वर्णन में निर्वहण सन्धि विद्यमान है। इन शास्त्रीय लक्षणों महाकाव्यों की भाँति नेमिनाथमहाकाव्य में वस्तुव्यापारों की के अतिरिक्त ने मिनाथ महाकाव्य में महाकाव्योचित रस- विस्तृत योजना हुई है। इसकी भाषा में अद्भुत उदात्तता व्यंजना, भव्य भावों की अभिव्यक्ति, शैली की मनोरमता तथा शैली में महाकाव्योचित प्रौढ़ता एवं गरिमा है। तथा भाषा को उदात्तता विद्यमान हैं । चित्रकाव्य की योजना के द्वारा काव्य में चमत्कृति उत्पन्न ने मनाथमहाकाव्य को शास्त्रीयता करने तथा अपना रचनाकौशल प्रदर्शित करने का प्रयास नेमिनाथकाव्य पौराणिक महाकाव्य है अथवा इसको भी कवि ने किया है। अलंकारों का भावपूर्ण विधान, गणना शास्त्रीय शैली के महाकाव्यों में की जानी चाहिये, रस, व्यंजना, प्रकृति तथा मानव-सौन्दर्य का हृदयग्राही इसका निश्चयात्मक उत्तर देना कटिन है। इसमें एक ओर चित्रण, सुमधुर छन्दों का प्रयोग आदि शास्त्रीय काव्यों की पौराणिक महाकाव्यों के तत्त्व वर्तमान हैं, तो दूसरी ओर ऐसी विशेषताएँ इस काव्य में हैं कि इसको शास्त्रीयता यह शास्त्रीय महाकाव्यों की विशेषताओं से भूषित है। में तनिक भी सन्देह नहीं रह जाता। वस्तुत: नेमिनाथपौराणिक महाकाव्यों की भाँति इसमें शिवादेवी के गर्भ में महाकाव्य की समग्न प्रकृति तथा वातावरण शास्त्रीय शेलो जिनेश्वर का अवतरण होता है जिसके फलस्वरूप उसे के महाकाव्य के अनुसार है। अतः, इसे शास्त्रीय महाचौदह स्वप्न दिखाई देते हैं। दिक्कूमारियाँ नवजात शिश काव्यों को कोटि में स्थान देना सर्वथा उपयुक्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210397
Book TitleKirtiratnasuri Rachit Neminath Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavratsinh
PublisherZ_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf
Publication Year1971
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationArticle & Kavya
File Size3 MB
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