________________
जैन संरकृत महाकाव्यों में कधिचक्रवर्ती कीर्तिराज महाकाव्य की रूढ़ परम्परा के अनुसार नेमिनाथउपाध्यायकृत नेमिनाथ महाकाव्य को गौरवमय पद प्राप्त है। महाकाव्य का प्रारम्भ नमस्कारात्मक मंगलाचरण से हुआ इसमें जैन धर्म के बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथ के प्रेरक है, जिसमें स्वयं काव्यनायक नेमिनाथ की चरणवन्दना चरित्र के कतिपय प्रसंगों को, महाकाव्योचित विस्तार के की गयी है :साथ, बारह सर्गों के व्यापक कलेवर में प्रस्तुत किया गया वन्दे तन्नेमिनाथस्य पदद्वन्द्व श्रियाम्पदम् । है। कीतिराज कालिदासोत्तर उन इने-गिने कवियों में हैं, नाथैरसेवि देवानां यद्धृङ्गरिव पङ्कजम् ॥ ११॥ जिन्होंने माघ एवं हर्ष की कृत्रिम तथा अलंकृतिप्रधान शैली आलंकारिकों के विधान का पालन करते हुए काव्य के एकच्छत्र शासन से मुक्त होकर अपने लिये अभिनव के आरम्भ में सज्जन-प्रशंसा तथा खलनिन्दा भी की गयी सुरुचिपूर्ण मार्ग की उद्भावना की है। नेमिनाथ काव्य है। यदुपति समुद्रविजय की राजधानी के मनोरम वर्णन में भावपक्ष तथा कलापक्ष का जो मंजुल समन्वय विद्यमान में कवि ने सन्नगरीवर्णन की रूढ़ि का निर्वाह किया है। है, वह ह्रासकालीन कवियों की रचनाओं में अतीव दुर्लभ काव्य का शीर्षक चरितनायक के नाम पर आधारित है, है। पाण्डित्य प्रदर्शन तथा बौद्धिक विलास के उस युग तथा प्रत्येक सर्ग का नामकरण उसमें वर्णित विषय के में नेमिनाथ महाकाव्य जैसी प्रसादपूर्ण कृति की रचना अनुरूप किया गया है, जिससे विश्वनाथ के महाकाव्यीय करने में सफल होना कीतिराज की बहुत बड़ी उपलब्धि है। विधान की पूर्ति होती है। अन्तिम सर्ग के एक अंश में नेमिनाथ महाकाव्य का महाकाव्यत्व
चित्रकाव्य की योजना करके जैन कवि ने हेमचन्द्र, वाग्भट प्राचीन भारतीय आलङ्कारिकों ने महाकाव्य के जो आदि जैनाचार्यों के विधान का पालन किया है। छन्द मानदण्ड निश्चित किये हैं. उनकी कसौटी पर नेमिनाथ- प्रयोग सम्बन्धी परम्परागत नियमों का प्रस्तुत काव्य में काव्य एक सफल महाकाव्य सिद्ध होता है। शास्त्रीय आंशिक रूप से निर्वाह हुआ है। काव्य के पांच सर्गों में तो विधान के अनुरूप यह सरंबद्ध रचना है तथा इसमें, महा- प्रत्येक सर्ग में एक छन्द की प्रमुखता है तथा सर्गान्त में काव्य के लिये आवश्यक, अष्टाधिक बारह सर्ग विद्यमान छन्द बदल जाता है। यह साहित्याचार्यों के विधान के हैं। धीरोदात गुणों से युक्त क्षत्रियकुल-प्रसूत देवतुल्य सर्वथा अनुरूप है। किन्तु शेष सात सर्गों में नाना वृत्तों नेमिनाथ इसके नायक हैं। नेमिनाथ महाकाव्य में का प्रयोग शास्त्रीय नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है क्योंकि शृङ्गार रस की प्रधानता है। करुण, वीर तथा रौद्र रस महाकाव्य में छन्दवैविध्य एक-दो सर्गों में ही काम्य माना का आनुषंगिक रूप में परिपाक हुआ है। महाकाव्य के गया है। महाकाव्यों को मान्य परिपाटी के अनुसार कथानक का इतिहास प्रख्यात अथवा सदाश्रित होना नेमिनाथकाव्य में नगर, पर्वत, प्रभात, वन, दूतप्रेषण आवश्यक माना गया है। नेमिनाथकाव्य का कयानक (प्रतीकात्मक ), युद्ध, सैन्य-प्रयाण, पुत्रजन्म, जन्मोत्सव, लोकविश्रा ने मिनाथ के चरित से सम्बद्ध है। चतुर्वर्ग में षड़ ऋतु आदि वर्ण्यविषयों के विस्तृत वर्णन पाये जाते हैं । से धर्म तथा मोक्ष की प्राप्ति इसका लक्ष्य है। धर्म का
वस्तुतः काव्य में इन्हीं वस्तुव्यापार वर्णनों का प्राधान्य है। अभिप्राय यहाँ नैतिक उत्थान तथा मोक्ष का तात्पर्य
परम्परागत नियमों के अनुसार महाकाव्य में पांच आमष्मिक अभ्युदय है। विषयों तथा अन्य सांसारिक आकर्षणों का परित्याग कर परम-पद प्राप्त करने की ध्वनि, नाट्यसन्धियों की योजना आवश्यक मानी गयी है। काव्य में सर्वत्र सुनाई पड़ती है।
नेमिनाथ महाकाव्य का कथानक यद्यपि अतीव संक्षिप्त है,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org