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कवि हस्तिरुचि और उनकी वैद्यक कृतियाँ ३०३
प्रदर को केवल 'प्रदर' कहा गया है। कुछ लौकिक एवं पारिवारिक कार्यसिद्धि के प्रयोग भी दिए है-जैसे-'अथ श्वसुरगृहे तरुणी तिष्ठति तत्र प्रयोगः' यह सभी की योनि में धूप देने का योग है। पुरुषलिंगवृद्धिकर प्रयोग भी दिए हैं । वाजीकरणप्रयोगों में 'मदनवृद्धिपाक' (८1१५-१७) विशेष महत्वपूर्ण है। मेथी के पाक को 'मागधीपाक' (७।३०-३४) कहा है। विजया (५।४), अहिफेन (४।२०, ५।४) और अकरकरा (४।२३) का योगों में प्रयोग हुआ है। लिंगलेप' (४।१९.२०) 'कामेश्वरगुटिका' (४।२४-२५) अफीम, जायफल और जावित्री का योग है । 'नागभस्म विधि' (४।२८२९) भी दी है।
उदर रोग में 'वज्रभेदीरस' (६।१-२) बताया है, परन्तु यह रसयोग नहीं है, केवल कष्ठौषधियां हैं। रसयोग भी दिए है, जैसे-सर्वकुष्ठारुरस (६।३-४), इच्छाभेदोरस (६।५-७) मन्दाग्निहा गुटिका (६।१७-१८) । 'स्रोतवृद्धिरोग' से सम्भवतः वृद्धि रोग (आमवृद्धि) लिया गया है (५।२१) ।
विभिन्न रोगों में इस ग्रन्थ के विषिष्ट एकौषधि-योग अत्यन्त उपयोगी है : १. एकान्तरज्वर (विषमज्वर) में धत्तूरपत्रस्वरस और दही (१।१४) । २. गर्भधारकयोग
. सग महिषीदग्ध और अजामत्र (२।९)। ३. पुत्रप्रदयोग
ऋतुकाल में पारसपीपलबीज, मिश्री, शर्करा (२।८)। ४. गर्भपातरोधक
धाय के फूल, मिश्री (२।९)। ५. गर्भवृद्धिकर
जाशुकी पुष्प-शीतल जल में पीसकर (२।१२) । ६. गर्भपातकर
सोंठ व उससे पांच गुना रसोन का क्वाथ (२।१८)। अलसी का तेल व गुड़ (२।२१)।
अलसी का तेल व गुग्गुल (२।२२)। ७. गर्भरोधक
पलाशबीज की राख, शीतल जल में (२।२७) । ८. कास-श्वास-क्षय-हृद्रोग स्नुहीदुग्ध व गुड़ (३।११) । ९. श्वास-कास
वासास्वरस व मधु (३॥१२)। १०. क्षयरोग
अर्कदुग्धभावित सैंधव लवण (३।१५)। ११. रक्तपित्त रोग में
मृतताल (हरताल भस्म), सिगुरस के साथ दें (३।२९)। १२.
मिश्री मिला हुआ बकरी का दूध (२।३०)। १३. वाजीकरण
कृष्ण मुशलीकन्द-चूर्ण व गो घृत (४८)। १४. प्रमेहरोग
पलाश के फूल व वंग भस्म (४।१२)। १५. नपुंसकता
बैगन में रखकर पकाया हुआ हिंगुल (४।१५)। १६. उष्णवात मूत्रकृच्छ्र
सूर्यक्षार (शोरा) और मिश्री (४।१६) । १७. अश्मरी
यवक्षार, शर्करा, गाय का तक्र (४।१८)। १८. बहुमूत्र
गराज व काले तिल, बासी जल से (४।२६)। १९. लिंगव्याधि
नागभस्म व मिश्री ( ४।२७) । २०. अर्शरोग
थूहरके दूध का लेप (५।९)।
इन्द्रजव व बड़ के दूध का सेवन (५।९)। २२. भिलावे के विकार में (सूजन) मक्खन और तिल; दूध और मिश्री, घी और मिश्री का लेप
करें (५।१२)।
२१.
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