Book Title: Kavi Hasturich aur Unki Vaidyak Krutiya Author(s): Rajendraprasad Bhatnagar Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf View full book textPage 1
________________ कवि हस्तिरुचि और उनको वैद्यक कृतियाँ डॉ० राजेन्द्रप्रकाश भटनागर उदयपुर (राज.) जैन विद्वानों द्वारा विरचित वैद्यक-ग्रन्थों में हस्तिरुचि-कृत 'वैद्यवल्लभ' का अन्यतम स्थान है। यह ग्रन्थ उत्तर-मध्ययुगीन जैन यति एवं वैद्यों की परम्परा में बहुत समादृत हुआ। राजस्थान एवं गुजरात में इसका पर्याप्त प्रचार-प्रसार रहा। अरावली पर्वतमाला के पश्चिम में गुजरात और मारवाड़ का क्षेत्र परसार जुड़ा हुआ है। प्राचीन समय में दोनों क्षेत्रों में एक ही अपभ्रंश भाषा बोली जाती थी, जिससे कालान्तर में, सम्भवतः चौदहवीं शती के बाद, प्रदेशों व राज्यों की भिन्नता के आधार पर गुजरात में गुजराती एवं मारवाड़ में मरुभाषा विकसित हई। परन्तु सांस्कृतिक आदान-प्रदान तो बहुत समय बाद तक प्रचलित रहा। मारवाड़ क्षेत्र के जैन यति-मुनि मारवाड़ एवं गजरात में विचरण करते रहते थे। हस्तिरुचि का बिहार भी पश्चिमी भारत में रहा। अतः उनका यह ग्रन्थ इस क्षेत्र में बहत प्रसिद्ध रहा। कवि-परिचय हस्तिरुचि तपागच्छीय रुचि शाखा के श्वेताम्बर जैन यति थे । इन्होंने स्वयं को 'कवि' कहा है । "चित्रसेन पद्मावति रास' (गुजराती) के अन्त में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है : ___ तपागच्छ में 'हीरविजयसूरि' हुए, जिन्होंने बादशाह अकबर को प्रतिबोध दिया था। उनके पट्टधर "विजयसेनसरि' हुए, उनके पट्टधर 'विजयदेवसूरि' हुए। उनके गच्छ में 'कवियों की परम्परा में 'लक्ष्मीरुचि' कवि हुए, उनके शिष्य विजयकुशल' कवि हुए, उनके शिष्य 'उदयरुचि' कवि हुए। उदयरुचि के सत्ताईस शिष्य थे जो जप, तप और विद्या में निपण थे। उनमें से एक 'हितरुचि हुए। उनके ही शिष्य 'हस्तिरुचि' हुए। ये प्रकाण्ड विद्वान् और प्रसिद्ध चिकित्सक थे। हस्तिरुचि की गुजराती भाषा में 'चित्रसेन पद्मावति रास' नामक काव्य-रचना मिलती है। इसकी रचना कवि ने अहमदाबाद में संवत् १७१७ (१६६० ई०) विजयादशमी के दिन पूर्ण की थी। 'हस्तिरुचि गणि' के अन्य ग्रन्थ भी मिलते है। मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने इनका ग्रन्थ-प्रणयनकाल संवत् १७१७ से १७३९ माना है। परन्तु इनकी 'षडावश्यक' पर वि० सं० १६९७ में लिखी व्याख्या भी मिलती है। अतः इनका ग्रन्थरचनाकाल सं० १६९५ से १७४० तक मानना उचित होगा। निश्चितरूप से कहा नहीं जा सकता कि हस्तिरुचि किस क्षेत्र के निवासी थे। जैन-मनि विहार करते हुए अन्यत्र भी जाते रहते हैं। कुछ इन्हें मारवाड़ क्षेत्र का मानते हैं। परन्तु इनका गुजरात-निवासी होना प्रमाणित होता है। वैद्यक पर इनकी दो रचनाएँ मिलती हैं : १. वैद्यवल्लभ और २. वन्ध्याकल्पचौपई । १. जैन गुर्जर कविओ (गुज०), भाग २, पृ० १८५-८६ पर उद्धृत । २. मो• द० देसाई, 'जैन साहित्यनो इतिहास', पृ० ६६४ । ३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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