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________________ वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री विद्यावाचस्पति व्याख्यान केसरीसमाजरत्न न्यायकाव्यतीर्थ कर्नाटक साहित्य की प्राचीन परम्परा कर्नाटक प्रान्त के प्राचीन विद्वानों ने जैनसंस्कृति व साहित्य की रक्षा के लिए अपना विशिष्ट योगदान दिया है. आज भी जैन पुरातत्त्व, साहित्य, स्थापत्यकला आदि के दर्शन जो इस प्रांत में होते हैं उनसे विश्व का समस्त भाग आश्चर्यचकित होता है. भगवान् बाहुबली की विशालकाय मूत्ति, बेलूर काल के मन्दिर, मुडबिद्री की दर्शनीय नवरत्ननिर्मित अनर्थ्य रत्नप्रतिमाएँ, आदि आज भी इस प्रांत के वैशिष्ट्य को व्यक्त करते हैं. जैन साहित्य के सृजन और संरक्षण का श्रेय भी इस प्रान्त को अधिकतर मिलना चाहिये, क्योंकि षट्-खण्डागम सदृश आगम-ग्रंथ की सुरक्षा केवल इस प्रांत के श्रद्धालु बन्धुओं की कृपा से ही हो सकी, यह एक स्वतन्त्र विषय है. इस लेख का विषय केवल कर्नाटकसाहित्य की परम्परा का अवलोकन करना है. कर्नाटक-साहित्य की परम्परा वैसे तो कर्नाटक-साहित्य की परम्परा का सम्बन्ध बहुत प्राचीन काल से जोड़ा जाता है. भगवान् आदिनाथ प्रभु की कन्या ब्राह्मी ने कन्नड लिपि का निर्माण किया, इस प्रकार का एक कथन परम्परा से, इतिहासातीत काल से सुनने में आता है, परन्तु आज हमें ऐतिहासिक दृष्टि से इस साहित्य की परम्परा कितनी प्राचीन है, इसका विचार करना है. अनेक ग्रंथों के अवलोकन से यह अवगत होता है कि प्राचीन आचार्य युग में कर्नाटक ग्रंथकर्ताओं का भी अस्तित्व था. कर्नाटक-साहित्य-निर्मिति का सर्वप्रथम श्रेय जैन ग्रंथकारों को ही मिलना चाहिए. इस विषय में आज के साहित्यजगत् में कोई मतभेद नहीं है. केवल प्राचीनता के लिए ही नहीं, विषय व प्रतिपादन महत्त्व के लिए भी आज कर्नाटक में जैन साहित्य को ही प्रथम स्थान दिया जा सकता है. इसलिए आज अनेक विश्वविद्यालयों के पठन-क्रम में जैनसाहित्यग्रंथ ही नियुक्त हुए हैं. जैनेतर निष्पक्ष विद्वानों ने जैन साहित्य की मुक्तकण्ठ से अनेक बार प्रशंसा की है. इस दृष्टि से कर्नाटक जैन साहित्य की परम्परा बहुत प्राचीन और महत्त्वपूर्ण है, यह निर्विवाद सिद्ध होता है. प्राचीनकाल में इस साहित्य के निर्माता जैन कवियों को राजाश्रय मिला था अतः गंग, पल्लव, राष्ट्र कूट आदि राजवंशों के राज्यकाल में इन कवियों को विशेष प्रोत्साहन मिला. इन कवियों से उन राजाओं को अपने राज्यशकट को निधि रूप से चलाने के लिए बल मिला, यह विविध घटनाओं से सिद्ध होता है. राष्ट्र कूट शासक नृपतुग नौवीं शताब्दी में हुआ है, उसने कविराजमार्ग की रचना की है. उसके उल्लेखों से अनुमान किया जा सकता है कि उससे पहले भी कर्नाटक साहित्य की रचना हुई है. उससे पहले पुराने कन्नड जिसको 'हवे कन्नड' के नाम से कहा जाता है, उसमें ग्रंथों की रचना होती थी. कविराजमार्ग में नृपतुग ने कुछ हवे कन्नड काब्यों के प्रकार का निर्देश किया है. इसके अलावा कुछ प्राचीन कवियों का उल्लेख भी ग्रंथकार ने किया है. A RANAL DATE HAWAT MIRRNA Jain Edtican .. mamSMETHINGTONION LIVEVRUSamaysetores IIT1111111111:MITTRITISHTRITTunwliaTI mutaneselibrary.org mmmmi MI...Im alliA...
SR No.210348
Book TitleKarnatak Sahitya ki Prachin Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherZ_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf
Publication Year1965
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size596 KB
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