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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ : जैन-धर्म की प्रथा अवश्य चल पड़ी हो, परन्तु ऋषभदेव के 'केसरियानाथ' में और श्रीमदभागवत में एक जैसा ही वर्णन मिलता है। इससे नाम का उनके कुंचित केशभार के कारण प्रचलित होना अधिक यह तथ्य उभरकर सामने आता है कि जैन परम्परा की तरह युक्तिसंगत है। 'वसुदेवहिण्डी' के वर्णनानुसार ऋषभ स्वामी के जैनेतर परम्परा में भी ऋषभदेव की मान्यता थी और उनकी केश दक्षिणावर्त यानी दाईं ओर से घुघराले और काले थे, जिससे पूजा-प्रार्थना या आराधना-उपासना दोनों परम्पराओं में समान उनका सिर छत्र के समान सुशोभित था : 'उसभसामी पत्त जोव्वणो भाव से प्रचलित थी। या छत्तसरिससिरो पयाहिणावत्तकसिण सिरोओ।' (द्र. इन पंक्तियों इस प्रकार यह सिद्ध है कि समस्त आर्य जाति में समान के लेखक द्वारा अनूदित-सम्पादित संस्करण, 1989 ई., पृ. 497) रूप से ऋषभदेव की न्यूनाधिक मान्यता अति प्राचीनकाल से का कई विद्वान् वेदों का रचनाकाल ईसा से पाँच हजार वर्ष ही विद्यमान रही है। इससे इस धारणा को भी बल मिलता है कि | अधिक पूर्व मानते हैं, किन्तु इतिहासवेत्ताओं का ऋषभ समग्र आर्यप्रजा के अर्हणीय देव हैं, साथ ही वे ब्राह्मण एक ऐसा भी वर्ग है, जो वेदों की रचना ईसा से सिर्फ 1500 वर्ष और श्रमण दोनों संस्कृतियों के समन्वय के सेतु-पुरुष हैं। पहले की बताता है। इससे स्पष्ट है कि ऋषभदेव इससे भी प्राचीन हैं, तभी तो वेदों में उनका उल्लेख प्राप्त होता है। इस सन्दर्भ प्रकार जैन-धर्म या जैन विषयक सन्दर्भ ऋग्वेदकालीन ही नहीं, 1. ऋषभ देव के दिव्य चरित के अनुशीलन के लिए श्रीमद्भागवत के ऋग्वेद-पूर्ववर्ती हैं। पञ्चम स्कन्ध के अध्याय तीन से छ: द्रष्टव्य हैं। उक्त साक्ष्य-सन्दर्भो से स्पष्ट है कि ऋग्वेद के वातरशना 2. विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-महावीर : व्यक्तित्व, उपदेश और मुनियों और भागवत के वातरशना श्रमण ऋषियों में सहज आचारमार्ग : रिषभदास राँका प्र. भारत जैन महामण्डल, बम्बई, पृ. 12-13 समानान्तरता है। इनके ही अधिनायक ऋषभदेव का जैन-साहित्य శారురురురురురురురురురువారం సాయయమురుగదుతారుమారులాగా Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210306
Book TitleRushabhnath Shraman aur Bramhan Sanskrutiye ke Samanvay Setu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanjan Suridev
PublisherZ_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
Publication Year1999
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Tirthankar
File Size541 KB
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