________________
पंचम खण्ड / १०४ भारतीय यौगिक परम्पराएँ
भारतीय-संस्कृति, तीन धाराओं में प्रवहमान रही है-वैदिक, बौद्ध एवं जैन । इस अपेक्षा से योगसाधना की भी तीन परम्पराएँ हैं-वैदिक, बौद्ध एवं जैन योग परम्परा । तीनों परम्पराओं का अपना स्वतन्त्र चिन्तन एवं मौलिक-विचार है। फिर भी तीनों परम्पराओं के विचारों में भिन्नता के साथ बहुत कुछ साम्य भी है। आगे हम इन्हीं परम्पराओं पर विचार करेंगे।
अर्चनार्चन
वैदिक योग-परम्परा
वेद एवं उपनिषद् काल की अपेक्षा षड्दर्शनों में योग की रूपरेखा अधिक स्पष्ट हो गई थी। योगदर्शन तो प्रमुख रूप से योग का विवेचक है ही।
योगदर्शन का प्रादि ग्रन्थ महर्षि पतंजलि का 'योगसूत्र' है। इसमें जो योग का स्वरूप प्राप्त होता है, वह वैदिक योगपरम्परा का पूरा प्रतिनिधित्व करता है। इसमें योग के पाठ अंगों का विवेचन है, जिनका परिपालन करके मानव-जीवन के चरम लक्ष्य कैवल्य-मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है । इन आठ अंगों के नाम इस प्रकार हैं-१ यम, २ नियम, ३ आसन, ४ प्राणायाम, ५ प्रत्याहार, ६ धारणा, ७ ध्यान एवं ८ समाधि ।
योग के इन अंगों के भेद-प्रभेदों पर सूक्ष्म विचार करने से यह स्पष्ट रूप से प्रतिभासित होता हैं कि इनमें और जैनधर्म में प्रतिपादित चारित्र के भेद-प्रभेदों में पर्याप्त साम्य हैं । उदाहरणार्थ-प्रथम योगांग 'यम' के जो पांच भेद महर्षि पतंजलि ने बताए हैं वही पाँच भेद व्रतों के रूप में जैनधर्म में बताए गए हैं । तुलना कीजिए"तत्राहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिपहा यमाः।"
पातंजल योगसूत्र २-३० "हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम्।"
तत्त्वार्थसूत्र, ७-१ आचार्य हरिभद्र ने भी योग की इस साम्यदृष्टि को ध्यान में रखते हुए पातंजल योग के आठ अंगों से अनुप्राणित पाठ योगदृष्टियों का विवेचन 'योगदृष्टिसमुच्चय' में किया है। बौद्ध योग-परम्परा
बौद्ध साहित्य में योग के स्थान पर 'ध्यान' और 'समाधि' शब्दों के प्रयोग मिलते हैं। महात्मा बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति के लिए जिस अष्टाङ्गिकमार्ग का उपदेश दिया उसमें पाठवें अंग 'समाधि' का विशेष महत्त्व है। उसे 'सम्यकसमाधि' नाम दिया गया है। 'सम्यकसमाधि' को प्राप्त करने के लिए चार प्रकार के 'ध्यान' का भी वर्णन है।४ १. "यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारध्यानधारणासमाधयोऽष्टाङ गानि।" पातंजल योगसूत्र २१९ २. "मित्रा तारा बला दीप्रा स्थिरा कान्ता प्रभा परा।
नामानि योगदृष्टिनां लक्षणं च निबोधत ॥" योगदष्टिसमुच्चय १३ १-सम्यग्दृष्टि, २-सम्यक्संकल्प ८ सम्यक्समाधि ।-संयुक्तनिकाय ५१० चार प्रकार के ध्यान-१ वितर्क-विचार-प्रीति-सुख-एकाग्रता सहित, २ प्रीति-सुख-एकाग्रता सहित, ३ सुख-एकाग्रता सहित, ४ एकाग्रता सहित,
३.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org