________________ यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन दर्शन या अनेकान्तवाद कहते हैं। वस्तु के अनन्तधर्मों का पृथक- 5. वही, गाथा, 33-34 पृथक एवं सापेक्ष निरूपण स्याद्वाद के द्वारा होता है। स्याद्वाद के 6. वही, गाथा-३४ सापेक्ष कथन के लिए सप्तभंगी को अपनाया गया है, क्याकि 7 पंचास्तिकाय गाथाजिज्ञासा की अपेक्षा से एक वस्तु में सात प्रश्न ही संभव है। 8. वही, गाथा--५-६ सर्वप्रथम कुन्दकुन्द ने ही सात भंगों का उल्लेख किया है-- 9. मोक्खपाहुड, गाथा--४ सिय अस्थि णत्थि उद्यं अव्वत्तव्वं पुणो य तत्तिदयं। 10. नियमसार, गाथा--६-७ दव्वं खु सत्तभंगं आदेसवसेण संभवदि।। पंचास्तिकाय-१४ . 11. वही, गाथा -- 71-72 विवक्षावश द्रव में सात भंग ही संभव हैं। 1. स्यादस्ति 12. वही, गाथा -- 149-151 किसी प्रकार है। 2. स्यान्नास्ति-किसी प्रकार नहीं है। ३.स्यादभयम-किसी प्रकार अस्तिनास्ति दोनों रूप है। 4 13. वहा, गाथा - 15 स्यादवक्तव्यम्-किसी प्रकार अवक्तव्य है। 5. स्यादस्ति 14. वही, गाथा 28 अवक्तव्यम्-किसी प्रकार अस्तिस्वरूप होकर अवक्तव्य है। 15. वही, गाथा-३३ 6. स्यानास्ति अवक्तव्यम् - किसी प्रकार नास्तिरूप होकर 16. वही, गाथा-२५ अवक्तव्य है। 7. स्यादस्ति नास्ति अवक्तव्यम् - किसी प्रकार 17. वही, गाथा-२८-२९ अस्ति नास्ति दोनों रूप होकर अवक्तव्य है। 18. सव्वेसिं खंधाणं जो अंतो त वियाण परमाण। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि कुन्दकुन्द के सो सस्सदो असद्दो एक्को अविभागी मुत्तिभवो।। पंचास्तिकाय, ग्रन्थों में जैन दर्शन की प्राचीन पारंपरिक सामग्री प्रचरता में गाथा-७७ उपलब्ध है। वहाँ तत्त्वार्थ एवं आवश्यक जैसे सिद्धान्तों की 19. नियमसार, गाथा 10-12 प्राचीन परंपरा का स्पष्ट विवरण प्राप्त होता है। जैन दर्शन के 20. वही, गाथा -- 13-14 अनेक विचार सर्वप्रथम कुन्दकुन्द ने अपने ग्रन्थों में व्यक्त किए हैं. इसलिए उनके चिंतन की मौलिकता स्वयं प्रमाणित है। 21. प्रवचनसार, 1/12, 14-16 परंपरा के अनेक मौलिक विषयों को सरक्षित रखने का श्रेय उन्हें 22. वही, गाथा 1/9 प्राप्त है। उक्त तथ्यों पर यहाँ संक्षेप में ही विचार किया जा सका 23. वही, गाथा 1/11 है। उनकी तुलनात्मक समीक्षा अपेक्षित है, जिसे यथावसर प्रस्तुत 24. वही, गाथा 1/12 करने का प्रयत्न रहेगा। 25. नियमसार, गाथा 83-140, सन्दर्भ 26. वही, गाथा - 141-147, 1. दंसणपाहुड, गाथा-३०,३२ 27. वही, गाथा-१५८ 2. नियमसार, गाथा-३८-४५ 28. द्रव्यसंग्रह, गाथा-४४ 3. वही, 46 समयसार-४९, भावपाहुड-६४ आदि। 29. नियमसार, गाथा - 161-165 4. वही, 49 30. वही, गाथा - 166-171 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org