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________________ - यतीन्दसूरि स्मारक ग्रन्य - जैन आगम एवं साहित्य आदि का भी निर्देश किया गया है।९ अनुयोगविधि और अनुयोगार्थ होते हैं? इस प्रश्न का उत्तर चूर्णिकार ने निम्न शब्दों में दिया है - का विचार करते हुए चूर्णिकार ने आवश्यकाधिकार पर भी पर्याप्त जेहिं एवं दंसणणाणादिसंजुत्तं तित्थं कयं ते तित्थकरा भवंति, प्रकाश डाला है। आनुपूर्वी का विवेचन करते हुए कालानुपूर्वी अहवा तित्थं गणहरा तं जेहिंकयं ते तित्थकरा, अहवा तित्थं के स्वरूप-वर्णन के प्रसंग से आचार्य ने पूर्वांगों का परिचय चाउव्वन्नो संघो तं जेहिं कयं ते तित्थकरा। भगवान की व्युत्पत्ति दिया है। 'णामाणि जाणि' आदि की व्याख्या करते हुए नाम शब्द इस प्रकार की है--भगो जेसिं अत्थि ते भगवंतो। भग क्या है? का कर्म आदि दृष्टियों से विचार किया गया है। सात नामों के इसका उत्तर देते हुए चूर्णिकार ने निम्न श्लोक उद्धृत किया है-- २३ रूप में सप्तस्वर का संगीतशास्त्र की दृष्टि से सूक्ष्म विवेचन माहात्म्यस्य समग्रस्य, रूपस्य यशस: श्रियः। किया गया है। नवविध नाम का नौ प्रकार के काव्यरस के रूप धर्मास्याथ प्रयत्नस्य, पण्णां भग इतींगना॥1॥ में सोदाहरण वर्णन किया गया है- वीर, शृंगार, अद्भुत, रौद्र, सामायिक नामक प्रथम आवश्यक का व्याख्यान करते हुए ब्रीडनक, बीभत्स, हास्य, करुण और प्रशांत। इसी प्रकार प्रस्तुत चूर्णिकार ने सामायिक का दो दृष्टियों से विवेचन किया है-द्रव्यपरंपरा चूर्णि में आत्मांगुल, उत्सेधांगुल, प्रमाणांगुल, कालप्रमाण, से और भावपरंपरा से। द्रव्यपरंपरा की पुष्टि के लिये यासासासा औदारिकादि शरीर, मनुष्यादि प्राणियों का प्रमाण, गर्भजादि मनुष्यों और मृगावती के आख्यानक दिए हैं।२४ आचार्य और शिष्य के की संख्या, ज्ञान और प्रमाण, संख्यात, असंख्यात, अनंत आदि संबंध की चर्चा करते हुए निम्न श्लोक उद्धृत किया है-- २५ विषयों पर भी प्रकाश डाला गया है। आचार्यस्यैव तज्जाड्यं, यच्छिष्यो नावबुध्यते। आवश्यकचूर्णि गावो गोपालकेनैव, अतीर्थेनावतारिताः॥1॥ यह चूर्णि२० मुख्यरूप से नियुक्ति का अनुसरण करते हुए सामायिक का उद्देश, निर्देश, निर्गम आदि २६ द्वारों से लिखी गई है। कहीं-कहीं पर भाष्य की गाथाओं का भी उपयोग विचार करना चाहिए,२६ इस ओर संकेत करने के बाद आचार्य किया गया है। इसकी भाषा प्राकृत है, किन्तु यत्र-तत्र संस्कृत के ने निर्गमद्वार की चर्चा करते हुए भगवान् महावीर के (मिथ्यात्वादि श्लोक, गद्यांश एवं पंक्तियाँ उद्धृत की गई हैं। भाषा में प्रवाह है। से) निर्गम की ओर संकेत किया है तथा उनके भवों की चर्चा शैली भी ओजपूर्ण है। कथानकों की तो इसमें भरमार है और करते हुए भगवान् ऋषभदेव के धनसार्थवाह आदि भवों का इस दृष्टि से इसका ऐतिहासिक मूल्य भी अन्य चूर्णियों से अधिक विवरण दिया है। ऋषभदेव के जन्म, विवाह, अपत्य आदि का है। विषय-विवेचन का जितना विस्तार इस चूर्णि में है उतना बहुत विस्तारपूर्वक वर्णन करने के बाद तत्कालीन शिल्प, कर्म, अन्य चूर्णियों में दुर्लभ है। जिस प्रकार इसमें भी प्रत्येक विषय का लेख आदि पर भी समुचित प्रकाश डाला है। ऋषभदेव के पुत्र अति विस्तारपूर्वक व्याख्यान किया गया है। विशेषकर ऐतिहासिक भरत की दिग्विजय का वर्णन करने में तो चूर्णिकार ने सचमुच आख्यानों के वर्णन में तो अन्त तक दृष्टि की विशालता एवं लेखनी कमाल कर दिया है। युद्धकला के चित्रण में आचार्य ने सामग्री की उदारता के दर्शन होते हैं। इसमें गोविंदनियुक्ति, ओघनियुक्तिचूर्णि एवं शैली दोनों दृष्टियों से सफलता प्राप्त की है। चूर्णि के इसी एक (एत्थंतरे ओहनिज्जुत्तिचन्नी भाणियव्या जाव सम्मता),वसुदेवहिण्डि अंश से चर्णिकार के प्रतिपादन-कौशल एवं साहित्यिक अभिरुचि आदि अनेक ग्रंथों का निर्देश किया गया है।२१ ।। का पता लग सकता है। सैनिकप्रयाण का एक दृश्य देखिएउपोद्घातचूर्णि के प्रारंभ में मंगलचर्चा की गई है और असिखेवणिखग्गचावपाराएकपमकप्पणिसूललउडार्भिडिमालधणुतोपसरपणेहि भावमंगल के रूप में ज्ञान का विस्तृत विवेचन किया गया है। य कालणीलरुहिरपीतसुविकल्ललअणेगचिंधसयसण्णिविटुं श्रुतज्ञान के अधिकार को दृष्टि में रखते हुए आवश्यक का निक्षेप- अफ्फोडितसीहणायच्छेलितहयसितहत्थिगुलगुलाइतअणेगरहसयसहस्सघणघणेतणिपद्धति से विचार किया गया है। द्रव्यावश्यक और भावावश्यक हम्ममाण सद्दसहितेण जगमं समकं भंभाहोरंभकिणितखरके विशेष विवेचन के लिए अनुयोगद्वार सत्र की ओर निर्देश कर मुहिमुर्गदसंखीयपरिलिवव्वयपीरव्वायणिवंसवेणुवीणावियचिमह दिया गया है।२२ श्रुतावतार की चर्चा करते हए चर्णिकार कहते हैं * तिकच्छभिरिगिसिगिकलतालकंसतालकरधाणुत्थिदेण संनिनादेण सकलमवि कि तीर्थंकर भगवान से श्रृत का अवतार होता है। तीर्थंकर कौन जावलाग पूरयत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210168
Book TitleAgamik Churniya aur Churnikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherZ_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
Publication Year1999
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationArticle & Agam
File Size2 MB
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