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________________ 000000000000 - 000000000000 *COODCEDED २९२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज — अभिनन्दन ग्रन्थ षट्खंडागम के चतुर्थ वेदनाखंड में नयों का प्रयोग हुआ है । वेदनाखंड के सोलह द्वार हैं । उनमें सात द्वारों में नय से कथन हुआ है। उसे यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। वेदना नय विभाषणता द्वार वेदना का निक्षेप चार प्रकार का है—१. नाम वेदना, २. स्थापना वेदना, ३. द्रव्य वेदना और ४. भाव वेदना । वेदना नय विभाषणता के अनुसार कौन नय किन वेदनाओं की इच्छा करता है ? उत्तर में कहा हैगम-वबहार संगहा सव्वाओ । उजुसुदो द्ववणं णेच्छदि । सद्दणओ णामवेयणं भाववेयणं च इच्छवि ॥ अर्थात् नैगम, व्यवहार और संग्रह ये तीन नय सभी वेदनाओं को स्वीकार करते हैं । ऋजुसूत्र नय स्थापना वेदना को स्वीकार नहीं करता है। शब्द नय नाम वेदना व भाव वेदना को स्वीकार करता है । विवेचन उपर्युक्त चारों वेदनाएँ भेद-रूप अनेक अवस्थाओं का बोध कराती हैं। इस अपेक्षा से नैगम नय हैं। इन चारों वेदनाओं में से प्रत्येक वेदना में अपनी जाति की अनेक वेदनाओं का समावेश है । अतः संग्रह नय है। चारों वेदनाएं अन्य पर आधारित हैं । अतः आरोप या उपचार रूप होने से व्यवहार नय है । ऋजुसूत्र नय में स्थापना वेदना के कथन का समावेश नहीं होने का कारण यह है कि स्थापना वेदना का बोध उपचार या आरोप से होता है। सहज सरलता से नहीं होता है। शेष नाम वेदना, द्रव्य वेदना और भाव वेदना का बोध सामने विद्यमान होने पर अनायास सरलता से हो जाने की अपेक्षा से ऋजुसूत्र नय है । शब्द नय का उपयोग केवल नाम और भाव वेदना में होता है। कारण कि वेदना शब्द से अभिप्रेत अर्थ की अनुभूति सामने विद्यमान नाम वेदना और भाव वेदना में ही घटित होती है। स्थापना वेदना और द्रव्य वेदना नहीं होती । अतः शब्द नय से उनका कथन नहीं हो सकता । वेदना - नाम-विधान द्वार वेणाणाम विहाणेति । णेगम ववहाराणं णाणावरणीय वेयणा, दंसणावरणीय वेयणा, वेयणीय वेयणा, आउव वेयणा, णाम वेयणा, गोय वेयणा, अंतराइ वेयणा ॥१॥ संगहस्स अट्ठणां पि कम्माणं वेयणा ||२|| उजुसुदस्स णो णाणावरणीय वेयणा, णो मोहणीय वेयणा, णो आउव वेयणा, णो णाम वेयणा, णो गोय वेयणा, णो अंतराइ वेयणा, वेयणीयं चैव वेयणा ||३|| सद्दणयस्स वेयणा चेब वेयणा ॥ ४ ॥ अर्थ - वेदना नाम विधान अधिकार के अनुसार नैगम और व्यवहार नय की अपेक्षा ज्ञानावरणीय वेदना, दर्शनावरणीय वेदना, वेदनीय वेदना, मोहनीय वेदना, आयु वेदना, नाम वेदना, गोत्र वेदना और अंतराय वेदना; इस प्रकार वेदना आठ भेद रूप है । यह नंगम और व्यवहार का कथन है ||१|| आठों ही कर्मों का एक वेदना शब्द द्वारा कथन संग्रह नय है ॥२॥ ऋजुसूत्र नय से वेदनीय ही वेदना है, शेष ज्ञानावरणीय आदि सात कर्मों की वेदना का कथन नहीं है ||३|| शब्द नय से वेदना ही वेदना है ||४|| विवेचन - ज्ञानावरणीय की वेदना, दर्शनावरणीय की वेदना इस प्रकार आठों ही कर्मों की वेदना रूप वेदना के आठ भेद या प्रकार हैं। यह कथन भेद रूप होने से नैगमनय का कथन है । इन आठों ही वेदनाओं का कथन प्राणी में वेदन रूप होने से उपचार या आरोप रूप कथन है, इस अवस्था में ये व्यवहार नय है । वेदना कथन से आठों कर्मों की सर्व वेदनाओं का समावेश हो जाता है । अतः यह कथन संग्रह नय का है । ऋजुसूत्र नय से केवल वेदनीय कर्मजनित वेदना ही वेदना है। कारण कि साता व असाता रूप वेदना का बोध सरलता से होता है। शेष सात कर्मों के वेदन का बोध अनायास सरलता से नहीं होता है । वेदन करना ही वेदना है। यह कथन नाम और भाव प्रधान होने से शब्द नय है । वेदना - प्रत्यय - विधान अधिकार वेण पच्चय विहात्ति ॥ १॥ णेगम - ववहार-संगहाणि णाणावरणीय वेयणा पाणादिवादपच्चए ॥ २॥ मुसा म त लग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210164
Book TitleAgamkalin Naya Nirupan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Golecha, Kanhaiyalal Lodha
PublisherZ_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf
Publication Year1976
Total Pages9
LanguageHindi
ClassificationArticle & Naya
File Size2 MB
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