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________________ . आगमकालीन नय-निरूपण | २६३ ०००००००००००० ०००००००००००० AADI ATTITUTIO वाद पच्चए ॥३॥ अवत्तादाण पक्चए ॥४॥ मेहुण पच्चए ॥५॥ परिग्गह पच्चए ॥६॥रादिभोयण पच्चए ॥७॥ एवं कोह-माण-माया-लोह-राग-दोस-मोह-पेम्म पच्चए ॥८॥ णिदाणपच्चए ॥९॥ अन्भक्खाण-कलह-पेसुण्ण-अरइ-उबहि-णियदि माण-माय-मोस-मिच्छणाण-मिच्छदसण-पओ अपच्चए ॥१०॥ एवं सत्तण्णं कम्माणं ॥११॥ उज्जुसुवस्स णाणावरणीय वेयणा जोग पच्चए पयडि-पदेसगां ॥१२॥ कसाय पच्चए द्विदि- अणुभाग वेयणा ॥१३॥ एवं सत्तण्णं कम्माणं ॥१४॥ सद्दणयस्स अवत्तव्वं ॥१५॥ एवं सत्तण्णं कम्माणं ॥१६॥ अर्थात् वेदना प्रत्यय विधान के अनुसार नैगम-व्यवहार-संग्रह नय के कथन की अपेक्षा ज्ञानावरणीय की वेदना प्राणातिपात प्रत्यय (कारण) से होती है । मृषावाद प्रत्यय से होती है । अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, रात्रि-भोजन, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, मोह, प्रेम, निदान, अभ्याख्यान, कलह, पैशुन्य, रति-अरति, उपाधि, निकृति, मान, मेय, मोष, मिथ्याज्ञान, मिथ्यादर्शन और प्रयोग इन प्रत्ययों से ज्ञानावरणीय की वेदना होती है। इसी प्रकार सात कर्मों की वेदना के प्रत्ययों की प्ररूपणा करनी चाहिए। ऋजुसूत्र नय से ज्ञानावरणीय की वेदना योग प्रत्यय से प्रकृति व प्रदेशाग्र (प्रदेश समूह) रूप होती है और ज्ञानावरणीय की स्थिति वेदना और अनुभाग वेदना कषाय प्रत्यय से होती है । इसी प्रकार ऋजुसूत्र नय से शेष सातों कर्मों के प्रत्ययों की प्ररूपणा करनी चाहिए। शब्द नय से ज्ञानावरणीय की वेदना अवक्तव्य है। इसी प्रकार शब्द नय से शेष सात कर्मों की वेदना के विषय में भी प्ररूपणा करनी चाहिए। विवेचन-ऊपर ज्ञानावरणीय की वेदना के प्रत्यय प्राणातिपात, मृषावाद आदि से लेकर 'प्रयोग' तक अनेक हैं । ये अनेक भेदरूप प्रत्ययों का कथन होने से नैगम नय है । ये ही प्रत्यय प्राणी की क्रिया या व्यवहार से सम्बन्धित कथन रूप होने पर व्यवहार नय का कथन होगा तथा भेद रूप प्रत्येक प्रत्यय अनेक उपभेदों का संचय होने से संग्रह नय का कथन है । ज्ञानावरणीय के वेदना के प्रत्ययों को इसी प्रकार नैगम, व्यवहार और संग्रह नय से शेष सात कर्मों की वेदना के प्रत्ययों की भी प्ररूपणा समझनी चाहिए। ऋजुसूत्र नय-ज्ञानावरणीय की वेदना योग प्रत्यय से प्रकृति व प्रदेश रूप एवं कषाय प्रत्यय से स्थिति और अनुभाग वेदना होती है । विद्यमान वेदना और प्रत्यय में यह सीधा-सरल संबंध होने से ऋजुसूत्र नय का कथन है। शेष सात कर्मों के प्रत्ययों की भी प्ररूपणा ऋजुसूत्र नय से इसी प्रकार होती है। शब्द नय-ज्ञानावरणीय वेदना अवक्तव्य है। क्योंकि ये प्रत्यय अनुभूतिपरक हैं । शब्दों में वेदना प्रत्ययों की अभिव्यक्ति नहीं हो सकती है । अत: शब्द के अर्थरूप से इन प्रत्ययों का कथन शक्य नहीं है । वेदना-स्वामित्व विधान वेयण सामित्त विहाणेत्ति ॥१॥ णेगम ववहाराणि णाणावरणीय वेयणा सिया जीवस्स वा ॥२॥ सिया णोजीवस्स वा ॥३।। सिया जीवाणं वा ॥४॥ सिया णोजीवाणं वा ||५|| सिया जीवस्स च णोजीवस्स च ॥६॥ सिया जीवस्स च णोजीवाणं च ॥७॥ सिया जीवाणं च णोजीवस्स च ॥८॥ सिया जीवाणं च णोजीवाणं च ॥६॥ एवं सत्तणं कम्माणं ॥१०॥ संग्गहणयस्स णाणावरणीय वेयणा जीवस्स वा ॥११॥ जीवाणं वा ॥१२॥ एवं सत्तण्णं कम्माणं ॥१३॥ सदुजुसुदाणं णाणावरणीय वेयणा जीवस्स ॥१४॥ एवं सत्तण्ण कम्मासं ॥१५॥ अर्थात् वेदना स्वामित्व विधान के अनुसार नैगम और व्यवहार नय की अपेक्षा ज्ञानावरणीय की वेदना कथंचित् जीव के होती है । कथंचित् नोजीव के होती है। कथंचित् बहुत जीवों के होती है । कथंचित् बहुत नोजीवों के होती है । कथंचित् एक जीव के और एक नोजीव इन दोनों के होती है । कथंचित् एक जीव के और बहुत नोजीवों के होती है । कथंचित् बहुत जीवों के और एक नोजीव के होती है । कथंचित् बहुत जीवों और बहुत नोजीवों के होती है। इसी प्रकार के प्रभेद नैगम और व्यवहार नय से शेष सात कर्मों की वेदना के सम्बन्ध में भी कथन जानना चाहिए। संग्रह नय की अपेक्षा ज्ञानावरणीय की वेदना एक जीव के या बहुत जीवों के होती है । इसी प्रकार संग्रह नय से शेष सात कर्मों की वेदना के विषय में भी कथन जानना चाहिए । शब्द और ऋजुसूत्र नय की अपेक्षा ज्ञानावरणीय की वेदना जीव के होती है। इसी प्रकार इन दोनों नय से शेष सात कर्मों की वेदना के विषय में भी जानना चाहिए। ...... A. 2 ./ 754 -uriSBoat Jain Education international
SR No.210164
Book TitleAgamkalin Naya Nirupan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Golecha, Kanhaiyalal Lodha
PublisherZ_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf
Publication Year1976
Total Pages9
LanguageHindi
ClassificationArticle & Naya
File Size2 MB
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