________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि जेण विणा लोयस्स वि ववहारो सबहा न निवडइ / तस्स भुवणेक्कगुरुणो णमो अणेगंतवायस्स / / संग्रह और किसी का शोषण नहीं हो सकता। जीवन अपरिग्रही हो जाता है। इस तरह आत्म शोधन की प्रक्रिया का मूलमन्त्र है - महावीर का स्याद्वाद। जैनाचार्य कहते हैं कि संसार के उस एक मात्र गुरु अनेकान्तवाद को मेरा नमस्कार है, जिसके बिना इस लोक का कोई व्यवहार सम्भव नहीं है। यथा - - आचार्य एवं अध्यक्ष, जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.) 0 डा. श्री प्रेमसुमन जैन का जन्म सन् 1642 में जबलपुर में हुआ। आपने वाराणसी, वैशाली व बोधगया में संस्कृत, पाली, प्राकृत, जैनधर्म एवं भारतीय संस्कृति का गम्भीर अध्ययन किया। आपने लगभग 20 पुस्तकों का लेखन-संपादन किया और 125 शोधपत्र प्रकाशित किए। आप सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर में जैन विद्या एवं प्राकृत विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं। आपने भारत व विदेशों में अनेक सम्मेलनों में शोधपत्र प्रस्तुत किए तथा जैन विद्या पर व्याख्यान दिये। 'प्राकृत-अध्ययन प्रसार संस्थान', उदयपुर के निदेशक एवं “प्राकृत-विद्या" पत्रिका के संपादक / सुप्रतिष्ठित लेखक, पत्रकार, वक्ता एवं संगठक। प्राकृत-विद्या के प्रति पूर्णतः समर्पित व्यक्तित्व ! मनुष्य का भाग्य जब दुर्भाग्य में परिणत होता है तो बुरे कर्मों का उदय होता है। दिन दुर्दिन हो जाते हैं तो सब बातें विपरीत हो जाती हैं। दश्मन प्रसन्न होते हैं। इस दशा को देखकर अपने सज्जन भी पराये हो जाते है और लेनदार तगादा, वापिस कर्ज की मांग का आग्रह करते हैं - “लाओ दो" ऐसी दुखद स्थिति में सुख कहाँ? शरीर का ढांचा हिल जाता है, चरमरा जाता है क्यों कि प्रति समय “गम की रोटी" यानि दुःख ही दुःख, चिंता ही चिंता सताती है। खुशी तो शुष्क हो गई और हृदय में दुःख की शूलें बढ़ गई। विपदग्रस्त व्यक्ति की दशा है यह। विपत्ति में पड़े व्यक्ति को विपद्ग्रस्त ही उससे सहानुभूति जताता है कि भाईजान ! तूं क्यों कुछ सोच रहा है? मेरी तरफ देख, मैं भी विपद्ग्रस्त हूँ। वह हमदर्दी जताएगा, उससे कुछ पूछने की कोशिश करेगा। लेकिन संपत्ति में रहने वाला व्यक्ति विपत्ति में रहने वाले की मनः स्थिति को क्या समझेगा और उसे कैसे समझाएगा? - सुमन वचनामृत अनेकान्तवाद : समन्वय का आधार | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org