________________ अनुयोगद्वारसूत्र और वैदिक व्याख्यान पद्धति की तुलना अनुयोगद्वारसूत्र में जो अनुयोग द्वार है उसका तात्पर्य सूत्र के अर्थ का निर्णय करना है। निरुक्त में भी कहा गया है कि शास्त्र के शब्दों का अगर कोई गलत अर्थ करता है तो उसमें पुरुष का दोष है, शास्त्र का नहीं। व्याख्यान के बारे में सही साम्य तो दोनों परम्परा में स्वीकृत अनुगम के पाँच और छः अंगों के बारे में है। वैदिक मंत्रों के जो पाठ पढ़ाए जाते हैं उसकी तुलना अनुयोगद्वार निर्दिष्ट अनुगम के साथ की जाये तो इसमें कोई सन्देह नहीं कि अनुगम पद्धति वैदिक धर्म में प्रचलित विधि जैसी ही है। दोनों पद्धतियों की तुलना इस तरह की जा सकती है। वैदिक जैन 1. संहिता ( मंत्र पाठ) 1 संहिता ( मूल पाठ) 2. पदच्छेद ( जिसमें पद, क्रम, जटा आदि 2 पद विविध आठ प्रकार की आनुपूर्वियों का समावेश होता है। .3. पदार्थ ज्ञान 3 पदार्थ 4. वाक्यार्थ ज्ञान 4 पद विग्रह 5. तात्पर्यार्थ निर्णय 5 चालन 6 प्रत्ययस्थान ( प्रसिद्धि) वैदिक परंपरा में मूल सूत्र को पहले शुद्ध और अस्खलित रूप से सिखाया जाता है। तदनन्तर उसके पदों का विश्लेषण और उसके बाद मीमांसा का प्रश्न आता है। इस तरह प्रथम पद का अर्थज्ञान, उसके बाद वाक्य का अर्थज्ञान और अंत में साधक-बाधक चर्चा से तात्पर्य का निर्णय किया जाता है। उसी प्रकार अनुयोगद्वार में अनुगम के छः अंग बनाए गए हैं। शेठ एम० एन० सायन्स कालेज और श्री एन्ड श्रीमती पी० के० कोटावाला आर्ट्स कालेज, पाटन ( उ० गु०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org