________________
अध्याय ३६ : खिलाफतके बदलेमें गोरक्षा ? और उनकी मनमानी अंधाधुंधीकी बातें सुन-सुनकर आश्चर्य और दुःख हुआ करता । वह पंजाब कि जहांसे सरकारको ज्यादा-से-ज्यादा सैनिक मिलते हैं, वहां लोग क्यों इतना बड़ा जुल्म सहन कर सके। इस बातसे मुझे बड़ा विस्मय हुआ और आज भी होता है ।
इस कमिटीकी रिपोर्ट तैयार करनेका काम मेरे सुपुर्द किया गया था। जो यह जानना चाहते हैं कि पंजाबमें कैसे-कैसे अत्याचार हुए, उन्हें यह रिपोर्ट अवश्य पढ़नी चाहिए। इस रिपोर्ट के बारेमें मैं तो इतना ही कह सकता हूं कि इसमें जान-बूझकर कहीं भी अत्युक्तिसे काम नहीं लिया गया है। जितनी बातें लिखी गई हैं, सबके लिए रिपोर्ट में प्रमाण मौजूद हैं। रिपोर्ट में जो प्रमाण पेश किये गये हैं उनसे बहुत अधिक प्रमाण कमिटीके पास थे। ऐसी एक भी बात रिपोर्ट में दर्ज नहीं की है, जिसके बारेमें थोड़ा भी शक था। इस प्रकार बिलकुल सत्यको ही सामने रखकर लिखी गई रिपोर्ट में पाठक देख सकेंगे कि ब्रिटिश राज्य अपनी सत्ता कायम रखने के लिए किस हदतक जा सकता है और कैसे अमानुषिक कार्य कर सकता है। जहांतक मुझे पता है इस रिपोर्ट की एक भी बात आजतक असत्य नहीं साबित हुई है ।
खिलाफतके बदलेमें गोरक्षा ?
पंजाबके हत्याकांडको फिलहाल हम यहीं छोड़ दें। कांग्रेसकी ओरसे पंजाबकी डायरशाहीकी जांच हो रही थी कि इतने में ही एक सार्वजनिक निमंत्रण मेरे हाथमें आ पहुंचा। उसमें स्वर्गीय हकीम साहब और भाई आसफअलीके नाम थे। यह भी लिखा था कि श्रद्धानंदजी भी सभामें आनेवाले हैं। मुझे तो खयाल' पड़ता है कि वह उपसभापति थे । देहली में खिलाफतके तथा संधि-उत्सवमें भाग लेने न लेने के संबंधमें विचार करने के लिए हिंदू-मुसलमानोंकी संयुक्तसभा होनेवाली थी और उसमें आने के लिए यह निमंत्रण मिला था । मुझ याद आता है कि यह सभा नवंबरमें हुई थी।