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________________ ४८० आत्म-कथा : भाग ५ आ पड़ा था। 'आतिथ्यका भार' शब्दका प्रयोग में जान-बूझ कर कर रहा है। क्योंकि आजकी तरह तब भी मैं जहां ठहरता, वह घर एक धर्मशाला ही हो जाता था। पंजाबमें मैंने देखा कि वहांके पंजाबी नेताओंके जेलमें होनेके कारण पंडित' मालवीयजी, पंडित मोतीलालजी और स्वर्गीय स्वामी श्रद्धानंदजीने मुख्य नेताओंका स्थान ग्रहण कर लिया था। मालवीयजी और श्रद्धानंदजीके संपर्क में तो मैं अच्छी तरह आ चुका था; पर पंडित मोतीलालजीके निकट संपर्कमें तो मैं लाहौरमें ही आया । इन तथा दूसरे स्थानिक नेताओंने, जिन्हें जेलमें जानेका गौरव प्राप्त नहीं हुआ था, तुरंत मुझ अपना बना लिया। कहीं मुझे यह न मालूम हुआ कि मैं कोई अजनबी हूं । हम सब लोगोंने एकमत होकर हंटर-कमिटीके सामने गवाही न देनेका निश्चय किया। इसके कारण उसी समय प्रकट कर दिये थे। अतएव यहां इनका उल्लेख छोड़ देता हूं। वे कारण सीधे थे और आज भी मेरा यही मत है कि कमिटीका, हमने जो बहिष्कार किया वह उचिंत ही था । पर यदि हंटर-कमिटीका बहिष्कार किया जाय तो फिर लोगोंकी तरफसे अर्थात् कांग्रेसकी ओरसे कोई जांच-कमिटी नियुक्त होनी चाहिए, इस निश्चयपर हम लोग पहुंचे । पंडित मोतीलाल नेहरू, स्व० चित्तरंजन दास, श्री अब्बास तैयबजी, श्री जयकर और मैं इतनोंको पंडितं मालवीयजीने उसका सदस्य बनाया। हम जांचके लिए अलग-अलग स्थानोंमें बंट गये। इस कमिटीकी व्यवस्थाका बोझ सहज ही मुझपर आ पड़ा था और मेरे हिस्से में अधिक-से-अधिक गांवोंकी जांचका काम आजानेके कारण मुझे पंजाबको और पंजाबके देहातको देखनेका अलभ्य लाभ मिला। इस जांचके दिनोंमें पंजाबकी स्त्रियां तो मुझे ऐसी मालूम हुई, मानो मैं उन्हें युगोंसे पहचानता होऊं। मैं जहां जाता वहां झुंड-की-झुंड स्त्रियां आ जातीं और अपने कते सूतका ढेर मेरे सामने कर देतीं। इस जांचके साथ ही मैं अनायास इस बातको भी देख सका कि पंजाब खादीका एक महान् क्षेत्र हो सकता है । - ज्यों-ज्यों में लोगोंपर हुए जुल्मोंकी जांच अधिकाधिक गहराईसे करने लगा त्यों-त्यों मेरे अनुमानसे परे सरकारी अराजकता, हाकिमोंकी नादिरशाही
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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