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________________ अध्याय ८ : चोरी और प्रायश्चित्त २७ जरूर मालूम हुआ कि केवल धुवां फूंकने में ही कुछ अानंद है। मेरे चाचाजीको सिगरेट पीनेकी आदत थी। और उनको तथा औरोंको धुंआ उड़ाते देखकर हमें भी फूंक लगानेकी इच्छा हुआ करती। पैसे थे ही नहीं, इसलिए चाचाजीके पीकर फेंके हुए सिगरेटके टुकड़े चुरा-चुराकर हम लोग पीने लगे । परंतु ये टुकड़े भी हर वक्त नहीं मिल सकते थे और उनसे बहुत धुआं भी नहीं निकलता था। इसलिए हम नौकरके पैसोंमेंसे एक-एक दो-दो पैसे चुराने और बीड़ी खरीदने लगे। पर यह दिक्कत थी कि उन्हें रक्खें कहां? यह तो जानते श्रेही कि बड़े-बूढोंके सामने बीड़ी-सिगरेट पी नहीं सकते। ज्यों-त्यों करके दो-चार पैसे चुराकर कुछ सप्ताह काम चलाया। इसी बीच सुना कि एक किस्मके पौधे ( उसका नाम भूल गया ) के डंठल बीड़ीकी तरह सुलगते हैं, और पी सकते हैं। हम उन्हें ला-लाकर पीने लगे ।। पर हमें संतोष न हुआ। यह पराधीनता हमें खलने लगी। बड़े-बड़ोंकी आज्ञाके बिना कुछ भी नहीं कर सकते, यह दिन-दिन नागवार होने लगा। अंतको उकताकर हमने आत्म-हत्या करनेका निश्चय किया। परंतु आत्म-हत्या करें किस तरह ? जहर लावें कहांसे ? हमने सुना था कि धतूरेके बीज खानेसे पादमी मर जाता है । जंगलमें घूम-फिरकर बीज लाये । शामका समय ठीक किया। केदारजीके मंदिर में जाकर दीपकमें घी डाला, दर्शन किया, और एकांत ढूंढा, पर जहर खानेकी हिम्मत न होती थी। तुरंत ही प्राय: न निकलें तो? मरनेसे आखिर क्या लाभ ? पराधीनतामेंही क्यों न पड़े रहें ? ' ये विचार मनमें आने लगे। फिर दो-चार बीज खा ही डाले। ज्यादा खानेकी हिम्मत न चली। दोनों मौतसे डर गये; और यह तय किया कि रामजीके मंदिर में जाकर दर्शन करके खामोश हो रहें और आत्म-हत्याके खयाल को दिलसे निकाल डालें। तब मैं समझा कि प्रात्म-हत्याका विचार करना तो सहल है। पर आत्महत्या करना सहल नहीं । अतएव जब कोई आत्म-हत्या करनेकी धमकी देता है तब मुझपर उसका बहुत कम असर होता है, अथवा यह कहूं कि विलकुल ही नहीं होता तो हर्ज नहीं । आत्म-हत्याके विचारका एक परिणाम यह निकला कि हमारी जूठी
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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