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अध्याय ४ : शांति-निकेतन
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शांति निकेतन
राजकोट से मैं शांति निकेतन गया । वहांके अध्यापकों और विद्यार्थियोंने मुझपर बड़ी प्रेम-वृष्टि की । स्वागतकी विधिमें सादगी, कला और प्रेमका सुंदर मिश्रण था । वहां काका साहब कालेलकरसे मेरी पहली बार मुलाकात हुई । कालेलकर 'काका साहब' क्यों कहलाते थे, यह मैं उस समय नहीं जानता था; पर बादको मालूम हुआ कि केशवराव देशपांडे, जो विलायतमें मेरे समकालीन थे और जिनके साथ विलायत में मेरा बहुत परिचय हो गया था, बड़ौदा राज्य में 'गंगनाथ विद्यालय का संचालन कर रहे थे । उनकी बहुतेरी भावनाओं में एक यह भी थी कि विद्यालय में कुटुंबभाव होना चाहिए। इस कारण वहां तमाम अध्यापकोंके कौटुंबिक नाम खखे गये थे । इसमें कालेलकरको 'काका' नाम दिया था । फड़के 'मामा' हुए। हरिहर शर्मा 'अण्णा' बने । इसी तरह और भी नाम रबखे गये । आगे चलकर इस कुटुंबमें प्रानंदानंद (स्वामी) काका के साथी के रूपमें और पटवर्धन (अप्पा) मामाके मित्रके रूपमें इस कूटुंबमें शामिल हुए । इस कुटुंबके ये पांचों सज्जन एक के बाद एक मेरे साथी हुए । देशपांडे 'साहेब' के नामसे विख्यात हुए । साहेबका विद्यालय बंद होनेके बाद यह कुटुंब तितरबितर हो गया; परंतु इन लोगोंने अपना प्राध्यात्मिक संबंध नहीं छोड़ा | काका साहब तरह-तरह के अनुभव लेने लगे और इसी क्रम में वह शांति निकेतनमें रह रहे थे। उसी मंडलके एक और सज्जन चिंतामणि शास्त्री भी वहां रहते थे । ये दोनों संस्कृत पढ़ाने में सहायता देते थे ।
शांति निकेतनमें मेरे मंडलको अलग स्थानमें ठहराया गया था। वहां मगनलाल गांधी उस मंडलकी देखभाल कर रहे थे और फिनिक्स आश्रमके तमाम नियमोंका बारीकी से पालन कराते थे । मैंने देखा कि उन्होंने शांति निकेतन में अपने प्रेम, ज्ञान और उद्योग-शीलता के कारण अपनी सुगंध फैला रक्खी थी । एंड्रूज तो वहां थे ही। पीयर्सन भी थे । जगदानंद बाबू, संतोष बाबू, क्षितिज मोहन बाबू, नगीन बाबू, शरद बाबू, और काली बाबूसे उनका अच्छा परिचय हो गया था !