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________________ ३८६ आत्म-कथा : भाग ५. 66 हो रही है । 'यदि यह बात हमारे हाथमें होती तो हम कभीके इस जकातको उठा देते । श्राप भारत सरकारके पास अपनी शिकायत ले जाइए । " सेक्रेटरी कहा मैंने भारत-सरकारके साथ लिखा-पढ़ी शुरू की; परंतु वहांसे पहुंचके लावा कुछ भी जवाब नहीं मिला । जब मुझे लार्ड चेम्सफोर्ड से मिलने का अवसर आया, तब अर्थात् दो-तीन वर्षकी लिखा-पढ़ी के बाद कुछ सुनवाई हुई । लार्ड चेम्सफोर्डसे मैंने इसका जिक्र किया तो उन्होंने इसपर आश्चर्य प्रकट किया । वीरमगामके मामलेका उन्हें कुछ पता न था । उन्होंने मेरी बातें गौरके साथ सुनी और उसी समय टेलीफोन करके वीरमगामके कागज पत्र मंगाये और वचन दिया कि यदि इसके खिलाफ कर्मचारियोंको कुछ कहना न होगा तो जकात रद कर दी जायगी । इस मुलाकातके थोड़े ही दिन बाद अखबारोंमें पढ़ा कि जकात रद हो गई । इस जीतको मैंने सत्याग्रहकी बुनियाद माना; क्योंकि वीरमगामके संबंध में जब बातें हुईं तब बंबई - सरकारके सेक्रेटरी ने मुझसे कहा था कि बगसरा में इस संबंध में आपका जो भाषण हुआ था उसकी नकल मेरे पास है । और उसमें मैंने जो सत्याग्रहका उल्लेख किया था उसपर उन्होंने अपनी नाराजगी भी बतलाई । उन्होंने मुझसे पूछा - " आप इसे धमकी नहीं कहते ? इस प्रकार बलवान् सरकार कहीं धमकी की परवाह कर सकती है ? 33 मैंने जवाब दिया- " यह धमकी नहीं है । यह तो लोकमतको शिक्षित करनेका उपाय है । लोगोंको अपने कष्ट दूर करनेके लिए तमाम उचित उपाय बताना मुझ जैसोंका धर्म है । जो प्रजा स्वतंत्रता चाहती है उसके पास अपनी रक्षाका अंतिम इलाज अवश्य होना चाहिए। आम तौरपर ऐसे इलाज हिंसात्मक होते हैं; परंतु सत्याग्रह शुद्ध अहिंसात्मक शस्त्र है । उसका उपयोग और उसकी मर्यादा बताना मैं अपना धर्म समझता हूं । अंग्रेज सरकार बलवान् है, इस बातपर मुझे संदेह नहीं; परंतु सत्याग्रह सर्वोपरि शस्त्र है, इस विषय में भी मुझे कोई संदेह नहीं ।" इसपर उस समझदार सेक्रेटरीने सिर हिलाया और कहा -- " देखेंगे ।
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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