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________________ आत्म-कथा : भाग १ पेलो पांच हाथ पूरो, पूरो पांचसे ने।' इन सबका मेरे दिलपर बड़ा असर हुआ। मैं राजी हो गया। मैं मानने लगा कि मांसाहार अच्छी चीज है। उससे मैं बलवान् और निर्भय बनूंगा। सारा देश यदि मांस खाने लगे, तो हम अंग्रेजोको हरा सकते हैं । मांसाहारकी शुरूपातका दिन तय हुआ । इस निश्चय--इस प्रारंभ--का अर्थ सब पाठक न समझ सकेंगे । गांधीपरिवार वैष्णव-संप्रदायका अनुयायी था। माता-पिता कट्टर वैष्णव माने जाते थे। हमेशा वैष्णव मंदिर जाते । कितने ही मंदिर तो हमारे कुटुंबके ही गिने जाते। फिर गुजरातमें जैनसंप्रदायका भी बहुत जोर था। उसका असर हर जगह और हर काममें पाया जाता था। इसलिए मांसाहारके प्रति जो विरोध---तिरस्कार गुजरातमें और श्रावकों तथा वैष्णवाम दिखाई पड़ता है, वह हिंदुस्तान में या सारी दुनियामें कहीं नहीं दिखाई पड़ता। ये थे मेरे संस्कार । फिर माता-पिताका में परम भक्त ठहरा। मैं मानता ही था कि यदि उन्हें मेरे मांसाहारका पता लग जायगा तो वे तो बे-मौत ही प्राण छोड़ देंगे। जान-अनजानमें सत्यका भी सेवक तो मैं था ही। पर यह नहीं कह सकता कि यह ज्ञान मुझे नहीं था कि यदि मांस खाने लगा तो माता-पिताके सामने झूठ बोलना पड़ेगा। __ऐसी स्थितिमें मेरा मांस खानेका निश्चय, मेरे लिए बड़ी गंभीर और भयंकर बात थी। परंतु मैं तो सुधार करना चाहता था। मांस शौकके लिए नहीं खाना चाहता-था। न स्वादके लिए मांसाहारका श्रीगणेश करना था। मैं तो बलवान, निर्भय, साहसी होना चाहता था। दूसरोंको ऐसा बनने की प्रेरणा करना चाहता था और फिर अंग्रेजोंको हराकर भारतवर्ष को स्वतंत्र करना चाहता था। 'स्वराज्य' शब्द उस समय नहीं सुन पड़ता था। कहना चाहिए, इस सुधारकी उमंगमें उम 'भाव यह है कि अंग्रेज इसी कारण हट्टे-कट्टे हैं और हमपर राज्य करते हैं कि वे मांस खाते हैं, और हिंदुस्तानी इसीलिए मुर्दा बने हुए हैं कि वे मांसाहार नहीं करते ।-अनु.
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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