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________________ अध्याय ४० : सत्याग्रहको चकमक ३५९ करनेकी नौबत आ गई | मैं लिख चुका हूं कि जब हमारे नाम मंजूर हो गये और लिखे जा चुके तब हमें पूरी कवायद सिखानेके लिए एक अधिकारी नियुक्त किया गया । हम सबकी यह समझ थी कि यह अधिकारी महज युद्धकी तालीम देनेके लिए हमारे मुखिया थे, शेष सब बातोंमें टुकड़ीका मुखिया में था । मेरे साथियोंके प्रति मेरी जवाबदेही थी और उनकी मेरे प्रति । अर्थात् हम लोगोंका खयाल था कि उस अधिकारीको सारा काम मेरी मार्फत लेना चाहिए। परंतु जिस तरह 'पूतके पांव पालनेमें ही नजर आ जाते हैं उसी तरह उस अधिकारीकी प्रांख हमें पहले ही दिन कुछ और ही दिखाई दी। सोराबजी बहुत होशियार आदमी थे । उन्होंने मुझे चेताया, “भाई साहब, सम्हल कर रहना । यह श्रादमी तो मालूम होता है अपनी जहांगीरी चलाना चाहता है । हमें उसका हुक्म उठाने की जरूरत नहीं है । हम उसे अपना एक शिक्षक समझते हैं। पर जो यह नौजवान श्राये हैं वे तो हमपर हुक्म चलाने आये हैं ऐसा मैं देखता हूं।" यह नवयुवक प्राक्सफोर्ड के विद्यार्थी थे और हमें सिखाने के लिए आये थे । उन्हें बड़े अफसरने हमारे ऊपर नायब अफसर मुकर्रर किया था । मैं भी सोराबजी की बताई बात देख चुका था । मैंने सोराबजी को तसल्ली दिलाई और कहा -- "कुछ फिकर मत करो।" परंतु सोराबजी ऐसे आदमी नहीं थे, जो झट मान जाते । "आप तो हैं भोले भंडारी । ये लोग मीठी-मीठी बातें बनाकर श्रापको धोखा देंगे और जब आपकी प्रांखें खुलेंगी तब कहोगे -- 'चलो, अब सत्याग्रह करो ।' और फिर आप हमें परेशान करेंगे ।" सोराबजीने हंसते हुए कहा । मैंने जवाब दिया-- " मेरा साथ करनेमें सिवा परेशानीके और क्या अनुभव हुआ है ? और सत्याग्रहीका जन्म तो धोखा खानेके लिए ही हुआ है । इसलिए परवा नहीं, अगर ये साहब मुझे धोखा दे दें । मैंने आपसे बीसों बार नहीं कहा है कि तो वही धोखा खाता है, जो दूसरोंको धोखा देता है ? " यह सुनकर सोराबजी ने कहकहा लगाया --- " तो अच्छी बात है। लो, धोखा खाया करो | इस तरह किसी दिन सत्याग्रह में भर मिटोगे और साथ-साथ हमको भी ले डूबोगे ।" इन शब्दोंको लिखते हुए मुझे स्वर्गीय मिस हा बहाउस के सहयोग
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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