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आत्म-कथा- भाग १
न हुआ। इसका कारण है। पुस्तकोंमें मैंने पढ़ा था कि खुली हवामें धूमना अच्छा होता है। यह मुझे पसंद आया और तभीसे--- हाईस्कूल के दिनोंसे-- घूमने जानेकी आदत मुझे पड़ गई थी, जो अबतक है । धूमना भी एक प्रकारका व्यायाम ही है। और इस कारण मेरा शरीर थोड़ा-बहुत गठीला हो गया।
अरुचिका दूसरा कारण था पिताजीको सेवा-शुश्रूषा करने की तीन इच्छा। स्कूल बंद होते ही तुरंत घर पहुंचकर उनकी सेवामें जुट जाता। लेकिन जब कसरत लाजिमी कर दी गई तब इस सेवामें विघ्न आने लगा। मैंने गीमी साहबसे अनुरोध किया कि पिताजीकी सेवा करने के लिए मुझे कसरतसे भाफी मिलनी चाहिए, परंतु वे क्यों माफी देने लगे ? एक शनिवारको सुबहका स्कूल था। शामको ४ बजे कसरतमें जाना था। मेरे पास घड़ी न थी। आकाशमें बादल छा रहे थे, इस कारण समयका पता न चला। बादलोंसे मुझे धोखा हुआ । जबतक कसरतके लिए पहुंचता हूं तबतक तो सब लोग चले गये थे। दूसरे दिन गीमी साहबने हाजिरी देखी तो मुझे गैरहाजिर पाया । मुझसे कारण पूछा। कारण तो जो था, सो ही मैंने बताया। उन्होंने उसे सच न माना और मुझपर एक या दो पाना (ठीक याद नहीं कितना) जुर्माना हो गया । मुझे इस बातने अत्यंत दुःख हुआ कि मैं झूठा समझा गया। मैं यह कैसे साबित करता कि मैं आज नहीं बोला । पर कोई उपाय न रहा था । मन मसोसकर रह जाना पड़ा। मैं रोया और समझा कि सच बोलनेगले और सच करनेवालेको गाफिल भी न रहना चाहिए। अपनी पढ़ाईके दरमियान मुझसे ऐसी गफलत वह पहली और आखिरी थी। मुझे कुछ-कुछ स्मरण है कि अंतको मैं वह जुर्माना माफ करा पाया था। ___ • अंतको कसरतसे छुट्टी मिल ही गई। पिताजीकी चिट्ठी जब हेडमास्टरको मिली कि मैं अपनी सेवा-सुथूपाके लिए स्कूलके बाद इसे अपने पास चाहता हूं, तब उससे छुटकारा मिल गया ।।
व्यायामकी जगह मैंने घूमना जारी रक्खा। इस कारण शरीरसे मेहनत न लेनेकी भूलके लिए शायद मुझे सजा न भोगनी पड़ी हो; परंतु एक दुसरी भूदनी सजा मैं आजतक पा रहा हूं। पढ़ाईमें खुशखत होनेकी जरूरत नहीं, यह गलत खयाल मेरे मनमें जाने कहांसे पा घुसा था, जो ठेठ विलायत जानेतक रहा । फिर, और खासकर दक्षिण अफ्रीकामें, जहां वकीलोंके और दक्षिण अफ्रीकामें